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भक्तणदोसाओ छोइयाहिं उट्ठजुयं । छिण्णं उच्छूचवण किरियाए अक्खमं जायं ॥ ३२२ ॥ परिभाविडं पवत्तो जई उच्छूणं फलाई होताई । ता सुंदरं भवंतं जयनिम्माणं पयावइणो ॥ ३२३ ॥ सुयणाण णिद्धणत्तं कुणउ कुलवालियाण वेहषं । उच्छूण 'णिष्फलत्तं धिरत्थु बुद्धी पयावइणो ॥ ३२४ ॥ अम्हाण चैव देसे अहवा ण फलंति इह पुणो एए । भूमिगुणाओ माफलमिति संभावणिज्जंति ॥ ३२५ ॥ ता जुज्जइ मे सम्मं गवेसिउं ताव तं तह करेइ । पुवागयस्स एगस्स भिन्नवहणस्स ( मणुयाणं ) ॥ ३२६ ॥ एत्थ दिवायर किरणसोसियाओ अमेज्झपिंडीओ । पेच्छइ चिंतइ एयाई ताई णूणं फलाइंति ॥ ३२७ ॥ भोतुं ताइं पवत्तो कयायरो तह गरेसिडं निच्चं । हा घी अन्नाणवसो जं सो जाओ इमेरिसओ ॥ ३२८ ॥ किं बहुणा सो पत्थिव! तारिसरूत्रीकयं रविकरेहिं । आहारइ नीहारं नियंव अचंतमूढप्पा ॥ ३२९ ॥ कालेण कयाइ वणी मिलिओ सो अह कओ य संभासो । समदेसवासगत्तेण दोवि हरिसं परं पत्ता ॥ ३३० ॥ वणिएण पुच्छिओ सो कहं । सरीरष्ट्ठिई इहं तुज्झ ? । उच्छूण भक्खणेणं तेणुत्ते भणियमियरेण ॥ ३३१ ॥ णो लहसि किं फलाई उच्छूणं तेण भासियमभावो । तेसिं भद्द ! फलाई भण तं चिय केरिसो साओ ॥ ३३२ ॥ भणइ स अईव महुरो दंसेह ममंति भासिए ताइं । जा दंसियाई ता दूरहसियवयणो भणइ वणिओ ॥ ३३३ ॥ एए पुरीसपिंडा रविकरसुक्का फलाई न हु होंति । गोरूवाण पणं भट्ट ! पयट्टो न सिट्ठाण ॥ ३३४ ॥ कत्तियदिणाणि भुंजंतयस्स ते अइगयाणि, सो भणइ । एगो मासो वणिएण | वृत्तमन्नाणफलमेयं ॥ ३३५ ॥ रक्तएण पाए पुरीसगड्डाए वोलियं सीसं । असुइलवसंगभीओ रओ सि जं असुइभोगम्मि ॥ ३३६ ॥ उच्छूण णिष्फलत्तं असदहंतेण सयलजणपयडं । सुइवाइणा तए भो विट्ठाए विनडिओ अप्पा ॥ २३७॥