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________________ 4-950-540 एहि त्ति जपंतो॥४१॥ अच्चंतभीसणंगो समुट्टिओ रक्खसो सुदुप्पेच्छो । तेणावि करे धरिया कहिओ तीए य सउभावो ॥ ४२ ॥ पम्मुक्का, आरामे गंतूणं वोहिओ सुहपसुत्तो। मालागारो भणिओ य सुयणु! सा है इहं पत्ता ॥४३॥ एवंविहरयणीए सभूसणा कह समागया तं सि । इय तेणं सा पुट्टा सिढे तीए य जहवित्तं ॥४४॥ अवो सचपइण्णा महासईम त्ति भावमाणेण । चलणेसु निवडिऊणं मालागारेण तो मुक्का ॥४५॥ पत्ता रक्खसपासे सिट्ठो से मालियस्स |वृत्तंतो। अबो महप्पभावा एसा, जा उज्झिया तेण ॥ ४६॥ इइ भावितेणं निवडिऊण पाएसु तेणवि विमुक्का । चोरसमीवे य गया सिहो तह पुषवुत्तंतो॥४७॥ तेहिं वि अणप्पमाहप्पदंसणुप्पन्नपक्खवाएहिं। सालंकारच्चिय वंदिऊण स गिहम्मि पट्टविया ॥४८॥ अह आभरणसमेया अक्खयदेहा अभग्गसीला य । पत्ता पइस्स पासे कहियं सर्व जहावित्तं hin४९ ॥ परितुट्ठमणेण समं तेण पसुत्ता समत्थरयणिपि । जाए पभायसमए चिंतियमिय मंतिपुत्तेण ॥ ५० ॥ छंदहियं ६ सुरुवं समसुहदुक्खं अणिग्गयरहस्सं । धपणा सुत्तविबुद्धा मित्तं महिलं च पेच्छंति ॥५१॥ इय भातेण कया घरस्स सा सामिणी समग्गरस । किं वन कीरइ निकवडपेम्मपडिबद्धहिययम्मि? ॥५२॥ इय पइतक्कररक्खसमालागाराण मज्झओ केणं । तच्चागेणं कय दुक्करं ति भो मज्झ साहेह? ॥ ५३॥ ईसालुएहिं भणियं सामी! पइणा सुदुक्करं विहियं। परपुरिससमीवे जेण पेसिया सबरीइ पिया ॥५४॥ भणियं छहालुएहिं सुदुकरं चेव रक्खसेण कयं । जेण चिरं छुहिदएण वि न भक्खिया भक्खणिजावि ॥ ५५ ॥ अह पारदारिएहिं पयंपियं देव! मालिओ एक्को । दुक्करकारी जेणं चत्ता 1 सा निसि सयं पत्ता ॥ ५६ ॥ पाणेण जंपियं होउ ताव चोरेहिं दुकरं विहियं । पइरिकेवि विमुक्का ससुवन्ना जेहिं सा SURGERMER
SR No.010796
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapvijay
PublisherMuktikamal Jain Mohan Mala
Publication Year1979
Total Pages1008
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size45 MB
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