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श्रीउपदेशपदे
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लायन्नं जलहिसलिलओ अहिगं । दिट्ठीभंगो रंगस्स सरिसओऽणंगणट्टस्स ॥ २९ ॥ कण्णंतपत्ततिक्खंतलोयणा किंच हसिरभणिरेसा। चित्तट्ठियावि देवी हरेइ चित्तं फुडं मज्झ ॥ ३० ॥ दत्तेणुत्तं देवेण माणुसीवि य इमा कया देवी । अहवा मस्सिओ चि देवस्स हवंति देवीओ ॥ ३१ ॥ एवंविहाओ किं माणुसीओ भो दत्त ! कत्थइ भवंति । पहसियवयणेण अणेण भासियं सुणउ ता देवो ॥ ३२ ॥ सा अन्नच्चिय लीला अन्ना सा अंगचंगिमा कावि । जा तीए माणुसीए लिहणं पुण सरणकज्ज्ञेण ॥ ३३ ॥ भणियं सविम्हएणं रन्ना ता भद्द ! कहसु का एसा । पडिभणइ तओ दत्तो एसा मम देव ! भइणित्ति ॥ ३४ ॥ जइ तुह भइणी ता दत्त ! सा ण दिट्ठत्ति भणसि किं एसा । इयरेण भणियमिहि कहेमि देवस्स परमत्थं ॥ ३५ ॥ जणगस्सुम्मड्डाए चलिओहं देसदंसणट्टाए । गहियसुमहग्घभंडो अक्खंडपयाणओ संतो॥ ३६ ॥ लंघियअणेगदेसो संपत्तो देवसालनगरस्स । जं संधीए अरण्णं सुण्णं गज्जंतसद्दूलं ॥ ३७ ॥ सन्नद्धपवरसुहडपरिवुडो तुरितुरमारूढो । सोहेमि अग्गमग्गं भिल्लपुलिंदाइसकाए ॥ ३८ ॥ भीमम्मि तम्मि दिट्ठो एगो एगत्थ पहसमासन्नो । आसनमतुरंगो सहसा पुरिसो अविचलंगो ॥ ३९ ॥ सबंगसुंदरी किं रइविरहे एस मुच्छिओऽणंगो । एमाइकयवियप्पो पलोइओ सो मए गंतुं ॥ ४० ॥ सो सावसेसजीओ णाउं सो सिसिरवारिणा सित्तो । लद्धपुणण्णवसण्णो पुणोवि सो पाइओ नीरं ॥ ४१ ॥ छाओयरोत्ति स मए मोयगभोगेण पीणिओ तत्तो । पुट्ठो सुपुरिस ! कत्तो कह वा पत्तो सि वणगहणं ? ॥४२॥ तेण वृत्तं । जंण मणोहरविसओ न कामचारेण गम्मए जत्थ । कम्मपवणेण पाणी निज्जइ उप्पाडिउं ताहे ॥ ४३ ॥ ता देवनंदिदेसा तुरंगहरिओ अहं इहायाओ । तुम्भेवि भणह सुपुरिस ! एत्तो संपत्तिया कत्थ ? ॥ ४४ ॥ भणियं मयावि
शङ्खकलावृतीनिदशनम् -
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