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श्रीउपदेशपदे
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ओ । तं भद्द ! मज्झ पुत्तो पढमो निरुविग्गओ विससु ॥ ६१ ॥ तो सत्थरक्खवाले निरूविडं देवसालनयरम्मि । नीओ समगंचिय दाविया य पडिवत्तिया रम्मा ॥६२॥ ततः । कहकहवि तेहिं हरियं रायकुमारेहिं देव ! मह हिययं । जह जणणिजणयनयरदेसवासस्स नो सरइ ॥ ६३ ॥ अत्थि पुण तस्स रन्नो धूया सिरिदेविकुच्छिसंभूया । लक्खणधरी सुरुवा अणुया जयसेणकुमरस्स ॥ ६४ ॥ तुलियतिलोत्तमतेया कलाकलावम्मि सुट्टु पत्तट्ठा | जणमणहरणसुचरिया कलावई सच्चवियनामा ॥ ६५ ॥ तीए अणुरूववरो गंवेसिओ सबओ न उण लद्धो । चिंताणलेण उज्झति तेण पियरो य भाया य ॥ ६६ ॥ अविय । जायंतिय दीणिम जणंति, जोयणसंपत्तिय, चिंतासायरि खिवहिं तवहिं परमंदिर जंतिय । पियपरिचत्त अर्हतपुत्त मणुतावहि जणयह, जम्मदिणिच्चिय नयण नीरु निंदिज्जइ धूयहं ॥ ६७ ॥ भणिओ तेहिं तओ हं भइfor हसु किंचि वरमुचियं । जं बहुरयणा पुहवी तुमंपि बहुहिंडणसहावो ॥ ६८ ॥ एवंति भणतेणं मवि लिहिओ इमीए पडिच्छंदो । तयणुण्णाओ कमसोहिज्जो गेहम्मि पत्तो हि ॥ ६९ ॥ फुरइ पुण मंज्झ हियए एसा देवरस चेव उचि यत्ति । नियसामियं पमोत्तुं रयणं को सहइ अन्नस्स ? ॥ ७० ॥ कुलगिरिसमुन्भवाणं ठाणं रयणायरो हु सवियाणं । मोनू सिं अन्न कत्थई घडइ किं जोण्हा ? ॥ ७१ ॥ तं सोऊण णरिंदो ताहे चिंताउरो दढं जाओ । कह मज्झ इमाए समं लहुमेव समागमो होही ? ॥ ७२ ॥ एत्थंतरम्मि मज्झण्हसमयसूया करो सुरगिहेसु । संखरवो संजाओ पढियं तह कालकहगेण ॥ ७३ ॥ उल्लसियतेयपयरो सूरो जणमत्थयं कमइ एसो । तेयगुणन्भहियाणं किमसज्झं जीवलोगम्मि ? ॥ ७४ ॥ सिंगारवुद्धिजणणी मणोरमा बहुमहूसवसणाहा । देवच्चणेण लब्भइ लच्छी दइया य कमलच्छी ॥ ७५ ॥
शङ्खकलावतीनिदर्शनम् -
॥ ३४३ ॥