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| महिं भमंतेहिं ॥ १३ ॥ ता देव ! देवसालं नयरं नयराइयं जयपयासं । अहमत्थत्थी सुत्यं वणिज्जकज्जे गओ आसि ॥ १४ ॥ रन्ना भणियं साहसु जंताईतेण तत्थ व गएण । किं सच्चवियमउयं अच्छरियं विउसमणहरणं ॥ १५ ॥ दत्तेण भणियमिह देवसालमइचोज्जसयसमाइनं । पुरमत्थि विसालं फलिहसालपरिवेढियं तत्थ ॥ १६ ॥ अप्पडिमाई सुरमंदिराई अकरो इव निवसइ सुहत्थी । कस्सवि य नत्थि माया गयवाहो तह जणो सो ॥ १७ ॥ णारीणंपि ण रक्खा इच्छिज्जइ जत्थ वेसलोगेवि । नो मन्निज्जइ बुद्धी केसाणं सवहा जत्थ ॥ १८ ॥ अविय । मासाहारा धीवरचरिया तह देव ! जत्थ | सकलत्ता । दीमंति पहाणमुणी कहिमो भे । कित्तियं देव ! ॥ १९ ॥ अन्नंपि किंपि चोजं दिङ्कं तं पुण ण साहिउँ सक्का । सयमेव तं पलोयउ णीलुप्पललोयणो देवो ॥ २० ॥ इय भणिऊण पयत्तेण गोवियं कड्डिऊण नरवइणो । चित्तफलयं पणामइ राया पासइ करे धरिडं ॥ २१ ॥ दिट्ठा तत्थोवहसियतियसवह्मणचमक्कसंजणणी । एगा कन्ना लायण्णसलिलकलसोवमाणथणी ॥ २२ ॥ विहिओ णेण पणामो णूणं रंभा तिलोत्तमा वावि । एसा देवी इय माणसम्मि परिचिंतियं तेण ॥ २३ ॥ अवो! सरलसहावस्स तुज्झ एसा कहं कुडिलरूवा । जाया वयणपउत्ती सहासवयणेण इय भणिओ ॥ २४ ॥ निज्झाइया अइचिरं भणियं अबो ! अउबगो कोवि । विन्नाणपगरिसो तस्स जेण लिहिया इमा एवं ॥ २५ ॥ का पुण एसा देवित्ति, पुच्छिए राइणा भणइ दत्तो । दिट्ठमणुण्णं लिहमाणगस्स को पगरिसो एत्थ ? ॥ २६ ॥ एगस्सचिय विण्णाणपगरिसो भण्णए पयावइणो । जेण पडिच्छंदस्सवि विरहे एसा विणिम्मविया ॥ २७ ॥ किं एत्थ अपडिपुष्णं भणियं रण्णा जमिंदुत्रिंवनिभं । वयणं कमलदलोवममच्छिजुयं, किंपि रमणिजो ॥ २८ ॥ अंगाणं विन्नासो,