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श्रीउपदेशपदे
॥ ३३५ ॥
दढं पावपरिहारी ॥ ११ ॥ सो पुण उदारयाए निच्चं असणाइयं मणुन्नपि । कस्सइ विस्साणिऊण उचियं उवभुत्तवं नियमा ॥१२॥ अह अन्नदिणे दिट्ठो उस्सप्पिणिनवमजिणवरो तेण । बिंदुज्जाणे पडिमाए संठिओ मेरुथिरमुत्ती ॥१३॥ दडूण तस्स - रूवं उवसमलच्छि च चारुतवचरणं । असमप्पमोयवसओ पढिउमिणं सो समाढत्तो ॥ १४ ॥ " वपु सुंदरु अंगविन्नासु कट हर यसरि करि कटरि लायण्णुववणह अइउवसमु लोयणहं अइय अइयं वलि धम्मचरणहं कर हुरि नयणई रंधकणि अज्ज हु अज्जं सुसेउ वलि वलि जोयहु चोज्ज करुइ हु परमप्पा देउ ॥ १ ॥ " इय उल्लसंतसद्धो थोउमसीमंतभत्तिराएण । बहुमाणमुहंतो जिणम्मि एसो गिहं पत्तो ॥ १५ ॥ कुसलाणुबंधिकम्मोदएण अह तस्स भोयणावसरे । पत्तो तिलोयनाहो भिक्खट्ठा गिहदुवारम्मि ॥ १६ ॥ तं पेच्छिकण बंदी आणंदरसोवरुद्धवंनियमो । पडिलाइ जिनिंद परिवेसिकामगुणिण ॥ १७ ॥ चिंतइ य अहं धन्नो सफलं मे अज्ज जीवियं अज्ज । जं भयवं दाणमिणं पडिच्छए पाणिपुड
॥ १८ ॥ एत्थंतरम्मि गयणे उच्छलिओ देवदुंदुहिनिनाओ । घोसिंति अहो दाणं अहो महादाणमिइ विबुहा ॥ १९ ॥ जणणियमहच्छेरं गंधोदयपुप्फवरिसणं जायं । उक्कोसा वसुहारा पडिया य घरंगणे सहसा ॥ २० ॥ अविय । नरनरवइसुरअसुरा वंदित्तं बंदिणोवि से पत्ता । किंवा सुपत्तदाणा जायइ अचम्भुयं न जए ? ॥ २१ ॥ इय पयडं माहप्पं पेच्छतो विसुद्धदाणधम्मस्स । भेत्तृण कम्मगंठिं दंसणसडो इमो जाओ || २२ || विणिओइऊण वित्तं पवित्तपत्तेसु दूरमहुरा सो । चइऊण पूइदेहं पत्तो पढमं अमरगेहं ॥ २३ ॥ भोत्तूण चिरं भोए सुरसुंदरिविसरवट्टियामोहे । चविउममरालयाए इहेव विणयंधरो जाओ ॥ २४ ॥ जाओ जहत्थनामो इमेण जाएण रयणसारिब्भो । जणणीविय पुन्नजसा
रतिसुन्दर्यादीनामु
उत्तरभव
वर्णनम् -
॥ ३३५ ॥