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श्री उपदेशपदे
॥ ३३१ ॥
वसओ। मित्तेहिंतो कहमवि विन्नाओ वेयसम्मेण ॥ ८ ॥ पुत्तसिणेहाइसया सयमेव पुरोहिओ पुणो तेण । कन्नं विमगिओ सो पडिवत्तिपुरोहियं बहु सो ॥ ९ ॥ सावत्थिपुरोहियनंदणस्स दिन्नत्ति तेण नो दिण्णा । उत्तमजणाण णूणं नन्नहा होइ पडिवन्नं ॥ १० ॥ रागग्गहेण नडिओ वियडमणो दुक्खसंकडावडिओ । गहु होइ अवेयरुई, वेयरुई तहवि. तबिसए ॥ ११ ॥ सच्चं वामो कामो जं जं अइदुल्लहं पराहीणं । वियरइ तत्थणुरायं साहीणे नायरं कुणइ ॥ १२ ॥ वम्महपित्तपत्तिो तो सो गुणसुंदरीनिहियचित्तो । सिक्खइ मंतपयाइं इच्छइ उवाइयसयाई ॥ १३ ॥ नवरं ऊसरववियं वीयं. व फलंति ताइं नो तस्स । आरंभा पुन्नविवज्जियाण कत्तो फलं देति ? ॥ १४ ॥ परिणीया य कयाई सावत्थी आगएण सुमुहुत्ते । पुन्नाहिएण विहिणा सा वाला पुन्नसम्मेण ॥ १५ ॥ घेत्तूण तं मयच्छि नियनयरिं पडिगओ पुरोहसुओ । इयरो विसायविहुरो छोहियकियवोध संजाओ ॥ १६ ॥ वियलियकुलाभिमाणो विरलीकयदेवविप्पवहुमाणो । वट्टइ अट्टवसट्टो सो तइया वेयरुइभट्टो ॥ १७ ॥ पीयासवोब धुत्तीरिओब विसघारिओ गहिलोब । जाओ तओ वराओ कज्जाकज्जाइमइव ॥ १८ ॥ अण्णदिणे संभाविय किं तीए वज्जियस्स जीएण । अवउज्झिऊण सबं सागेयाओ विणिक्खंतो ॥ १९ ॥ चलिओ सावथि पर तल्लाभोवायमंग्गणसयण्हो । पत्तो गिरिदुग्गगिरिं पहिलं सबराण सुविसालं ॥ २० ॥ ओलग्गिउं पवत्तो तयहिवरं विणयसारमच्चंतं । जाओ पञ्च्चयठाणं कमेण सो सवरपवरस्स ॥ २१ ॥ अब्भत्थिओ विसत्थो वडुणा सबराहिवो. अह कयाई । सावत्थिपुरोहियमंदिरम्मि धाडीनिमित्तेण ॥ २२ ॥ पडिवज्जिऊण तेणवि लक्खिय थक्केहिं चरनरेहिं तओ । दिन्ना झडत्ति धाडी निहेलणे पुन्नसम्मस्स ॥ २३ ॥ अवसोयणिविज्जाए पसुत्तपायम्मि परियणे सहसा । सबं से घरसारं
गुणसुन्दरीचरितम् -
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