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अरियं सत्ररविसरेण ॥ २४ ॥ वडुएणवि विलवंती गहिया गुणसुंदरी पहिट्ठेण । संपाविया य पल्लिं महुरगिरं संठवंतेण ॥ २५ ॥ भोयणवत्थाहरणं संपायंतेण सवमक्खूणं । मणहरवयणविणोया पसाइया वासरे केइ ॥ २६ ॥ अन्नम्मि दि भणिया तुह सुयणु ! गुणकणेहिं विविहेहिं । जं तइया मम हरियं हिययधणं तं समप्पेहि ॥ २७ ॥ वियरामि सुन्नण्णो | तेण विणा जीवियंतपत्तोद्य । कुणसु दयं ता धम्मिणि । किं चिट्ठसि निहुरा सुहु ॥ २८ ॥ अन्नं च । निवससि हियए सुइसु दीससे दिसिमुहेसु घोलेसि । फुरसि फुडं जीहग्गे विहिणा दूरीकया जइवि ॥ २९ ॥ इयजंपिरे सवियक्कमेव गुणसुंदरीए संलत्तं । नाहं मुणेमि सुंदर ! इमस्स भणियस्स परमत्थं ॥ ३० ॥ कइयावहं वहरियं को सि तुमं कत्थ ते सुपुबा हं । इय पुच्छिएण बडुणा निवेइयावेइयं निययं ॥ ३१ ॥ तं सोऊणं चिंतइ इणमो गुणसुंदरी सुसंविग्गा । ही गरुओ अणुबंधो दीसइ एयस्स मूढस्स ॥ ३२ ॥ एगागिणी असरणा अणज्जमेच्छाण मज्झयारम्मि । एत्तो रागंधाओ न याणिमो | कह णु छुट्टिस्सं? ॥ ३३ ॥ अहवा । अवि चलइ मेरुचूला उदेइ सूरोवि पच्छिमदिसाओ । मइलेमि जियंती नियकुलं च सीलं न कइयावि ॥ ३४ ॥ नय एरिसो वराओ एगंतेणैव निग्गुणो जेण । पत्थेइ नीइ निउणं मड्डाए खंडइ न सीलं ॥ ३५ ॥ ता एस वोहियवो न खंडियां च अत्तणो सीलं । एवं पवत्तिणीए आएसो पालिओ होइ ॥ ३६ ॥ मायावि एत्थ कज्जे परंजियवा असंकहिययाए । जं पावजणे सङ्कं उवइटुं नीइसत्येसु ||३७|| इय चिंतिय भणिओ सो जइ एवं उज्जओ । तुमं आसि । ता कीस ण तइयच्चिय तुमए जाणावियं मज्झ ? ॥ ३८ ॥ तइ सन्निहिए सुहए किं कजं मज्झ दूरगमणेण । | को फलियंत्रयपत्तो दूरत्थं सिंबलिं महइ ॥ ३९ ॥ ण य परलोगविरुद्धं न कलंको कुलदुगस्स विमलस्स । जोगे कुमार