SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 771
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ किलिस्संति॥१०६॥ विसयाण कए मूढा कुणंति चित्ताई पावकम्माई। निवडंति अपुन्नमणोरहावि नरए महापावा ॥१०७॥ दाजे उण विसयपरम्मुहहियया सधण्णुसासणे लीणा। तेसिं सुरनरसिवपयसुहाई करपल्लवत्थाई ॥१०८॥ इञ्चाइ निसामेंतो पडिवुद्धो लोयणो भणइ सम्मं । सुटु सुदिट्ठो मग्गो सुंदरि! तुमए सउण्णाए ॥ १०९ ॥ तं मज्झ गुरू सुंदरि! ता आइस किं करेमि एत्ताहे? । तीए भणियं परदारवज्जणं कुणसु जाजीवं ॥११०॥ एवंति पहिट्ठमणो पडिवन्नाणुवओ य सो तीए । उववाहिओ खमाविय गओ सनयरं निरुयदेहो॥१११॥ धम्मोवि पियासहिओ अज्जिइच्छियधणो सुहसुहेण ।। गंतूण तामलित्तिं पवालिओ नियकुलायारं ॥ ११२ ॥ इय रिद्धिसुंदरीए गुरुजणवहुमाणपूयपावाए । सम्मं अकरणनिय-|| मोऽणुवालिओ सुद्धभावाए ॥ ११३ ॥ 6 गुणसुंदरीवि सुरसुंदरीव वियसंतसारसुंदेरा । संपत्ता जणमणहारहारयं तारतारुण्णं ॥१॥ दिट्ठा य सहीसहिया कयाइ तणएण वेयसम्मस्स । वडुएण वेयरुइणा जोवणगुणरूवमत्तेण ॥ २॥ परिचिंतियं च धन्नो अज्जाहं जं पलोइया अजा। पउमय पउमपाणी अणमिसनयणा सुरवहुध ॥३॥ अविय । “पंकय पंकि वहोडिय कुवलय बुद्धदहि, बिंबविवाडि घल्लिय | | ससहरु खित्तु नहि । निम्मिवि करु णयणाऽहर मुह लीलावइहि, उच्चिट्ठी निय सिट्टि विनाइ पयावइहि ॥ ४ ॥” तहा । कासकुसुमंच मन्ने सुनिप्फलं जम्मजीवियं निययं । जइ ता इमा मयच्छी न विसयलच्छीव मम गेहे ॥५॥ इय विविहं झायंतो मयणानलताविओ ठिओ एसो । जा नयणगोयराओ पत्ता अन्नत्य सा मुद्धा ॥ ६॥ नायाकूएहिं गिहं नीओ8 | मित्तेहिं देहमित्तेण । मणभमरो पुण तीए मुहारविंदे च्चिय चहुट्टो ॥७॥ अवउज्झिय भोयणमजणाइआवस्सओ मयण CALCALCREASS ACROCY
SR No.010796
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapvijay
PublisherMuktikamal Jain Mohan Mala
Publication Year1979
Total Pages1008
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy