________________
प्रकाशकनिवेदन.
श्रीउपदे- (रेल्वेमा) गुम थवं, थोडा खराबीमा, ए नुकशानी साथे प्रेसमां ५०० नकल छापवानी हती ( तेथी तेटलो अडसट्टो व्यवस्थित शपदे
ISKI|करेल) परंतु अमारा मित्र. झ. जीवणचंद सा० नी प्रेरणाथी (अमारी जाणबहार ) प्रेसे १०००-छापी। ॥२॥
ए रीते करी राखेल अडसट्टानो उथलो थवाथी, संपूर्ण ग्रन्थ खर्चने लगभग पहोंची वळती रकम अर्ध (पहेला भाग )मां समाइ । अर्धथी अधिक शेष (बीजो) भाग न छपाय तो ग्रंथ अधूरो रहे ! बीजी बाजु विशेष आवी म्होटी मद् मेळववा प्रयत्न न होवाथी(छपावीए तोय ) खर्चने पहोंची वळवा मुश्केली रहेवानी! पहेलानी किमतथी बीजाना खर्चने पहोंचवा उमेद राखी, कार्य आगल चालु रखाव्युं । परन्तु, ( भेटनी मागणी विशेष वेचाणनी ओछी जेथी) अत्यारसुधी वेचाणमा ३००-पण पूरी न गई। उपर मुजब | बीजा भागना खर्चने पहोंचवा मुराद पार न पडवाथी, निरुपाये खर्च पूरतुं वेचाण तरफ दोरावं पडशे । सबब-बीजा भाग माटे आर्थिक मदद किंचित् पण नथी । अस्तु ।
छतां आ माळाथी अत्यार सुधीना टुंका समयमां पण आवा उपयुक्त ग्रन्थो प्रसिद्धिमा लाव्याबद्दल, अमोने थतो पूर्ण आल्हाद एज अमारी सिद्धिनुं पगथीयु!। श्रीमुक्तिकमक जैनमोहन ज्ञानमंदिर )
निवेदकवीर०२४५१ वि० १९८१ श्रावणमास) बडोदरा
श्रीमोहनप्रतापी नन्दचरणोपासक
लालचन्द.
ASSESSOISTAISIUS SAUGOS
॥२॥