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__ "प्रकाशकनिवेदन"। अत्यारसुधी आ माळानां गुंथायेल २२ पुष्पो पैकी श्रीप्रतिमाशतकस्खोपज्ञबृहद्वृत्ति, कर्मग्रन्थचतुष्कसटीक, श्रीविपाकसूत्रे टीका-छायायुक्त, रत्नप्रभा नामनी नवीन पद्धतिनी नूतन टीकावाळो अभिधानचिन्तामणि (हैमी) कोश अने-७०० पानानुं दळPादार अनेक उपयोगी घटनासह श्रीमहावीरदेव (गुजराती) चरित्र-ए खास उपयुक्तप्रन्थो प्रसिद्ध थवा बद्दल, अमो मगरुर छीए ।
तथापि, विषयथी श्लोकोथी सर्वरीते आ उपदेशपद ग्रन्थतो विशेष उपयुक्त होइ; वाचक वर्गने अर्पतां घणो प्रमोद थाय छे! हजारो जैन औपदेशिक पुस्तकोना लगभग शिखर जेवा १४५०० प्रमाणना सटीक आ ग्रन्थनी स्वीकाराती जरुरी उपयोगिता, तेमां पण शुद्ध | उपदेशकोने तो अवश्य पाठ्य-संग्राह्य-सुवाच्य थवा, एकंदर दरेकने सुलभ प्राप्ति माटे-अमाराउद्धारक, अने ध्रांगध्रानरेश-तेमना प्रधानमंडल तथा भीलोडीया-रामपरादि ठाकोर-राजकुमार विगेरे अनेक जैन नेतर भव्यजीवप्रतिबोधक शुद्धोपदेशक, परम कृपालु, पूज्य सद्गुरु जैनाचार्य श्रीमद्विजयमोहनसूरीश्वरजी महाराजनी इच्छा जणायाथी; अने एवण प्रातःस्मरणीय पूज्यश्रीजीनाज मदुपदेशथी (पूर्व भागमा रोशन थयेला नामी उदार गृहस्थोद्वारा) मळेल आर्थिक सहायथी छपाववा प्रबंध थयो। | सं० १९७६ ना मोघवारीना समयमां मुंबईथी कागल खरीदाइ कलकत्ता प्रेसमां रवाना थया । त्यां कार्य धार्ये वखते मलवा असं|भव लागवाथी, बडोदरा प्रबंध करी कागलो त्यां मंगाव्या, अहिंपण तेज असंभव । आखरे दोढेक वर्ष कागलोने अहिं तहि रेल्वे मुसाफरीनो अंत आव्यो, ने निति निर्णयसागरमा कार्यारंभ थयो, "म्होटां (श्रेयः) कार्योमा विन होय" हवे अमे निश्चिन्त थइ ये, यां एक म्होटी मुकेलीए चेतवणी आपी ते आ-मुंबईथी कलकत्ता-वडोदरा ने फरीथी मुंबइनी मुसाफरी दरम्यान बे रीमनु