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श्रीउपदे
शपदे
निवो पर उत्तरमा माग
॥२१६॥
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षष्ठिका जातिरन्योन्याभ्यां वियुक्तयोः" । तं सोचा सो लहुमेव रायपासे पढेइ गंतूण । मुच्छाविगरालच्छो झत्ति महीए । ब्रह्मचक्रिनिवो पडइ ॥ ८८ ॥ सवणाणंतरमुवलन्भ तस्स वसणं हणेउमारद्धो। तं जाव परियणो भणइ समणओ एयमुवलद्धं 8' चरितम्
॥८९ ॥ उत्तरमद्धं सपणालाभे राया भणेइ सो कत्थ । उज्जाणे देव ! ममं तो हरिसपरबसो राया ॥९०॥ सवनियरि5 द्धिसहिओ तईसणहेउमागओ जाओ। कमलवणं पिव सूरालोए सवियासमुहकमलो ॥ ९१॥ वंदित्ता उवविट्ठो पुट्ठो
वुत्तमाइमं सर्व । भणिओ तहा जह इमं रज सममेव भुंजामो॥ ९२ ॥ धम्मस्सविफलमेयं जमेरिसा गरुयरजसंपत्ती। ता एयभोगकाले न सुंदरा दुक्करा किरिया ॥ ९३ ॥ मुणिणावि मुणियदुबिसहभोगपरिणामदुक्खलक्खेण । विहिया विसयाण विसोवमाण निंदा जहा एए ॥९४ ॥ सल्लं कामा विसंकामा कामा आसीविसोवमा। कामे पत्थेमाणा अकामा जति दुग्गई ॥९५॥ सर्व गीयं विलवियं सर्व नद्दे विडंबणा । सबे आभरणा भारा सवे कामा दुहावहा ॥९६॥ इय उवमागन्भेहिं चित्तेहिं तेहिं तेहिं बयणेहिं । चक्की लद्धविरागो मणागमिय जंपिउं लग्गो ॥९७॥ अहंपि जाणामि जहेह साहू जं मे तुम अक्खसि वकमेयं । भोगा इमे संगकरा भवंति जे दुजया अजो अम्हारिसेहिं ॥९८॥ मुनिः-जइ ता सि भोए चइ असत्तो अज्जाई कम्माई करेहि रायं। धम्मे ठिओ सवपयाणुकंपी होहिसी देव इओ विउवी ॥१९॥
नो तुज्झ भोगे चइऊण बुद्धी गिद्धोसि आरंभपरिग्गहेसु । मुहा कओ एत्तियविप्पलावो गच्छामु रायं आमंतिओ सि ॐ॥१०० ॥ पंचालरायावि य बंभदत्तो साहुस्स तस्सा वयणं अकाउं । अणुत्तरे भुंजिय कामभोगे अणुत्तरे सो नरए 5॥२१६॥ है पविट्ठो ॥१०१॥ चित्तोवि कामेहिं विरत्तकामो उदग्गचारित्ततवो महेसी । अणुत्तरं संजम पालइत्ता अणुत्तरं सिद्धि