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ब्रह्मचक्रिचरितम्
श्रीउपदे- चरियं न जुज्जए काउं॥५६॥ जइ नाम विसहरो कहवि करस लग्गेज किं पुणो तस्स । भक्खणममूढमणसो घडेज शपदे मणुयस्स, इय भणिरे ॥ ५७ ॥ जा न निवम्मि पसीयइ ता चित्तो लद्धवइयरो ज्झत्ति । तस्स समीवमुवगओ भणइ
जह उवसमं कुणसु ॥ ५८॥ एसो कोवहुयासो निरंकुसो पजलिओ गुणवणाई । निद्दहइ चंडतावो खणेण सुत्ते जओ ॥२१५॥
भणियं ॥ ५९॥जह वणदवो वर्ण दवदमस्स जलिओ खणेण निद्दहइ । एवं कसायपरिणओ जीवो तवसंजमं डहइ
॥६०॥ तहा-कोहो कद्दमकोहोब कस्स मो होइ कद्दवित्थारो। उबेपकारणं दारुणाण दुक्खाण मूलखणी ॥१॥ ६ एमाइदेसणावारिवाहधाराहिं वरिसिओ संतो। विज्झावियकोहग्गी वेरग्गमुदग्गमह स गओ ॥ ६२॥ नमुई अमच्चो वि त नराहिवेण बंधाविऊण तम्मूले । आणविओ तेणविसाणुकोसचित्तेण मोयविओ ॥ ६३ ॥ तो दोवि विरागाओ पवनपज्ज
तकालकरणिज्जा । जा चिट्ठति नरवई अहन्नया वंदणनिमित्तं ॥ ६४॥ पत्तो तयंतिए तेसिं चेव पयपज्जुवासणपरम्मि । 8 तम्मी तक्खणपच्छागएण तस्सित्थिरयणेण ॥६५॥ संभंतपणामकरण कहवि पाएसु अग्गकेसेहिं । छुत्तो पमत्तचित्तो है। संजाओ ज्झत्ति संभूओ॥६६॥ जइ अग्गकेसफासो इमीए एयारिसो सुहो मन्ने । सबंगसंगसमए कोवि अपुबो धुवं होही
॥६७॥ इय भावंता चित्ते नियाणमेयारिसं कुणइ सहसा । जइ मे तवाणुभावो समत्थि जम्मंतरे होज्जा ॥८॥
एयारिसित्थिलाभो वारिजंतो वि भाउणा बाढं । कागिणीकज्जे कोडी न फेडिउं तुज्झ जुत्तत्ति ॥ ६९॥ तत्तो मुया समाहै णा जाया सोहम्मदेवलोगम्मि । नलिणीगुम्मविमाणे सोहग्गमहोयही देवा ॥ ७० ॥ कालेण विमाणाओ तओ चुया| र भारहम्मि इह खित्ते । संभूओ जाओ वंभदत्तनामा जहा चक्की ॥७१॥ तह पुवंचिय कहियं जो पुण चित्तो पुरे पुरा
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॥२१५॥