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श्रीभरतब्रह्मचक्रि चरि०
श्रीउपदे- Yणं ण निया सोहा देहस्स इमस्स जं गया छाया । जाया झत्ति करंगुलिरेसा नियभूसणविहीणा ॥७॥ता पजत्तमि-
शपदे ४. मेहिं जणियाए मज्झ देहसोहाए । मोत्तुं कमेण लग्गो ताई स उदग्गवेरग्गो ॥८॥ एसा य रायलच्छी पबलानिलदोलि॥२१३॥
यंबुरुहसरिसा । तुच्छा वोच्छेयफला अलाहि इण्हिं ममेईए ॥९॥ इह सुद्धज्झाणपरो जा वट्टइ ताव संजमट्ठाणं । पढम पत्तो तत्तो खणेण सो केवली जाओ॥१०॥ संजमठाणेसु असंखलोगमाणेसु जो जिओ पढम । (ठाणं) चिय पावइ सो खणेण परिवुड्डपरिणामो॥११॥ गंतुं संजमसेढीसीसं संपत्तकेवलालोओ। होइ जह भरहचकी भणियमिणं कप्पभासम्मि ॥ १२ ॥ अह उज्झियगिहिलिंगो विसिट्ठमुणिवेसधारगो हो । सुरसामिणा सयं चिय संपाडियपयडपरम
महो ॥ १३ ॥ सुरनिम्मियपउमोयरनिसन्नओ सो जिणोव परिसाए । आढत्तो परिकहिउं धम्म नवमेहगहिरसरो॥१४॥ ६ पुवाण लक्खमक्खंडमेगमेवं महिं विहरिऊण । अट्ठावयम्मि सिद्धो नियरओ स भगवंति ॥१५॥
जो एस वंभदत्तो चक्की जम्मतराई तस्सेह । निसुणिज्जति इमाई नियाणबंधो फलं चेव ॥१॥ सागेयम्मि पुरवरे सावगलोगावतंसओ आसि । चंदावतंसनामा नराहिवो निम्मलनयट्ठो॥२॥ तस्स सुपवित्तचित्तो पुत्तो मुणिचंदनामगो सो
य। निबिनकामभोगो सागरचंदंतिए दिक्खं ॥३॥ अइतिक्खं पडिवन्नो विहरंतो तेसु तेसु देसेसु । गुरुचरणमूललीणो है अहन्नया भिक्खणट्ठाए ॥ ४ ॥ गामम्मि पविट्ठो विहरिओ य सत्थेण वियडअडवीए । पभट्ठो तं तन्हाछुहाकिलंतं निय
च्छंति ॥५॥ चत्तारि गोवपुत्ता तं पइ संजायभत्तिबहुमाणा । पडिजागरंति तदेसणाए बुद्धाय पवइया ॥६॥ तत्थ दुवे मोहुदया धम्मदुगंछं करित्तु किंचि मया । सुरलोगम्मि गयाओ दसपुरनयरे जसमईए ॥ ७॥ दासीए उप्पन्ना संडि
OSSEISSA
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॥२१३॥