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श्रीउपदे-15 रक्खि जो तयं तरइ ॥५३॥ पायविलग्गो सो तस्स खामणं कुणइ भणइ य जहेए । सज्जा जायंति तहा कुणेहि काऊ- श्रीअडशपदे णमणुकंपं ॥५४॥ भणइ मुणी पधजं जइ मे गिण्हंति वेइ तो राया। दिना तुहञ्चिय परं मणोवियप्पं उवलभामितोदाहर
IN ॥ ५५ न चयंति परं बोत्तुं तह कुणह जह भासगा खणं हॉति । इय विन्नत्ते रन्ना गओ मुणी तस्समीवम्मि ॥५६॥ ॥१९४॥ 18 पगुणीकयमुहर्जताण ताण कहिओ सवित्थरो धम्मो । पुट्ठा पबजाए कजे संवेगगयचित्ता ॥ ५७ ॥ पडिवजति भणंति
य जोएहिं गुणेहिं खंतिमाईहि । पुवभवन्भासाओ तहाविहाओ य इय भासा ॥ ५८ ॥ सबंगं कयसंजोयणेसु पुर्व व ' र निरुयदेहेसुं । जाएसु मुणी चरियाए निग्गओ अन्नदिवसम्मि ॥ ५९॥ सुमुहुत्ते निवकुलसमुचियाए नीईए दोवि नि
क्खंता । चिंतेइ रायपुत्तो ममोवगारी इमो एस ॥६०॥ दुट्ठज्झवसाणाओ इमाओ मोयाविया दर्द जेण । णूणं ण दणरयपडणा विणा फलं अस्स होजत्ति ॥ ६१॥ एओवायाउ विणा अन्नोवाओ ण होतओ णूणं । ता ओसहव एसा
विडंबणा ण उण तत्तेण ॥ ६२॥ एवं पुरोहियसुओ विचिंतइ नवरि जं विडंबेउं । पञ्चइया विहिया नेव सुंदरं तं कय- मणेण ॥ ६३ ॥ अकलंकपालियवया समाहिसारा तओ मरेऊण । तियसेसु समुप्पन्ना गुरुप्पओसो तओ चेव ॥ ६४॥ नवरि पुरोहियपुत्तस्स चित्तओ नो कहिचिंवि नियत्तो। तदणुगएणं चिय तेण चरमकिरिया कया सवा ॥ ६५ ॥ जाया 5 तत्थ उदारा भोगा विहिया जिणाइ महिमाओ । पत्तम्मि चवणकाले कप्पडुमकंपणाईहिं ।। ६६ ॥ मुणिए महाविदेहे | वासम्मि जिणंतिगम्मि पुच्छंति । सुयधम्मा उवलद्धावसरा संता जहा अम्हे ॥ ६७ ॥ किं सुलहबोहिया अहव अन्नहा है अग्गिमे भवे होमो । एवं पसिणे विहियम्मि तेहि, भगवं तओ भणइ ॥ ६८॥ एस पुरोहियपुत्तो दुल्लहबोही निमित्तमे
॥१९४॥
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