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श्रीउपदे
शपदे ॥१८४॥
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देसणावसाणे पडिबुद्धेसु बहुसु पाणीसु । अंसुजलकलियनयणो रोमंचंकुरियसबंगो॥६५॥ दाउं पयाहिणातिगमभिवं- श्रीमेघकुदिय भासए इमं मेहो । जं तुब्भे वयह न सबहेव तं किंचि अलियंति ॥६६॥ इच्छामि तुम्हमंते निक्खमिउमिमाओ 4 मारोदाहभवमसाणाओ । जनवरि जणगलोयं पुच्छामि तओ गओ सगिह ॥ ६७॥ भणइ जणणिं अहम्मो! भगवं अभिवंदि-8
रणम् ओजिणो वीरो। निसुओ य तस्स धम्मो कन्नसुहो अमयसारिच्छो ॥ ६८॥ सा तं पडिभणइ तओ जाया! कयलक्खणो तुमं एगो । तं चेव य सकयत्थो अजं संपत्तपुण्णिच्छो ।। ६९ ॥ जेण जगदेवगुरुणो तिलोयचूडामणिस्स गुणनिहिणो। ६ पयकमलं वच्छ ! तए निहालियं वियसियमणेण ॥ ७० ॥ भणियं मेहेण तओ इच्छामी भयवओ चरणमूलं । गिहवा
साओ इमाओ निक्खमि तिक्खदुक्खाओ॥७१॥ खरपरसुपह्यचंपयलयब सा ज्झत्ति धरणिवीढम्मि । पडिया विह-5 डियसवंगभूसणा भग्गसोहग्गा ।। ७२ ॥ पवणेण सीयलजलेहिं तह य पहलेहिं चंदणरसेहिं । सित्ता सुबुहं तह तालविंटपरिवीइया संती ॥ ७३ ॥ उम्मीलियनयणजुया पञ्चागयचेयणा भणइ तणयं । उंबरपुप्फंव तुमं सुदुल्लहो कहवि मे है लद्धो ॥ ७४ ॥ ता जाव अहं जीवामि ताव एत्थेव निवओ वससु । तुह विरहे जेण लहुं जीयं मे जाति कुलतिलय ! ॥७५ ॥ परलोयंतरियाए मइ पवज तुमं करेज्जासि । एवं च कए सुंदर! कयन्नुयत्तं कयं होइ ॥७६॥ (मेघ:-) जलवुब्बुयविजुलयाकुसग्गजलधयवडोवमाणम्मि। मणुयाण जीविए मरणमग्गओ पच्छओ वावि ॥ ७७॥ को जाणइ कस्स कहं होही वोही सुदुल्लहो एसो । ता धरियधीरिमाए अंबाए अहं विमोत्तवो ॥ ७८॥ (धारिणी-सुकुलुग्गयाओ
:४॥ 5 सुमणोहराओ लायन्नसलिलसरियाओ। निम्मलकलालयाओ सुवन्नतारुन्नपुन्नाओ ॥ ७९ ॥ मियमहुरभासिणीओ
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