________________
| ॥ १२१ ॥ पत्तो बोहिं नियगेहलोय संवोणत्थमह सूरी । भणिओ भयवं ! मह मंदिरम्मि धम्मं कहं कुणह ॥ १२२ ॥ कश्या तह चित्र तीए तत्थ किज्जंतियाऍ भिक्खट्टा । पत्तो महागिरी संभ्रमेण अभुट्टिओ झत्ति ॥ १२३ ॥ मुणिवइणा अहत्यिणा, तओ सेट्टिणा स तुट्ठेण । पुट्ठो भयवं । को एस जेण अच्भुट्टिया तुम्हे ? ॥ १२४ ॥ भणियं सो अम्ह गुरू विसेस किरियापरो परं जाओ । उज्झिज्जमाणमन्नं गिण्हर पाणं च नो अन्नं ॥ १२५ ॥ एमाइगुणनिहाणं वृत्तंतं | तस्स समणमीहस्स । अइवित्थरेण कहिउं समए नियवसहिमणुपत्तो ॥ १२६ ॥ तत्तो वीयम्मि दिणे सबो वसुभूइणा निओ लोओ । पन्नविओ जह भत्तं पाणं च अणायरपरेहिं ॥ १२७ ॥ ववहरणिजं देजं अणिच्छमाणस्स अन्नमन्नस्स । | जश्या स गुरुण गुरु एज्जा भिक्खाकए कहवि ॥ १२८ ॥ पत्तम्मि तम्मंदिरम्मि तं तह विहेउमारद्धा । परिचिंतियं न एमो सम्भावोऽद्धभत्तो सो ॥ १२९ ॥ वसहिं तेण नियत्तो संज्झासमए सुहत्थिणो कहियं । अज्जो ! अणेसणा कीस अजा मज्झं तए विहिया ? ॥ १३० ॥ कहमेयं संभंतो पुच्छइ संसाहियं जहा तुमए । अवभुट्ठाणं जं मे विहियं कहिओ य वृत्तंतो ॥ १३१ ॥ तत्तो कुसुमपुराओ उज्जेणीए पुरीऍ संपत्तो। जीयंतसामिणीए पडिमाए वंदणनिमित्तं ॥ १३२ ॥ सिरिमं महागिरी परिमिएहिं समणेहिं समणुगम्मं तो । अभिवंदिय जिणविंवो संवोहियसाहुसंघाओ ॥ १३३ ॥ तत्तो दसण्णदेसे नगरं नामेण एलगच्छंति । तत्थ गओ स महप्पा अणसणविहिणा मरणहेरं ॥ १३४ ॥ तं आसि दसन्नपुरं | पुरा जहा एलगच्छमुप्पन्नं । तह संपइ भन्नइ मिच्छदिट्ठिणा साविया एगा ॥ १३५ ॥ दुट्ठाभिसंधिणा कहवि तत्थ केणावि कुलपसूएण | परिणीया जिणधम्मं विमलं सम्मं च सा कुणइ ॥ १३६ ॥ सूरत्थमणम्मि सया पच्चक्खाणं पवज्जमाणिं