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श्रीउपदेशपदे
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चरथी वहुया सा मग्गिया भणइ ताय ! । ते एवमेवमइभूरिभावमिहि समणुपत्ता ॥ २७ ॥ खित्ताओ कुंचियाओ कुट्टाराणं धणस्स अग्घम्मि । एए मम जणगगिहे चिट्ठति अणेगसालासु ॥ २८ ॥ एवं भवंति एए कयरक्खा ताव वाविया संता । सत्तिक्खयाओ नो किंचि हुंति जं निष्फला संता ॥ २९ ॥ तो बहुणा सगडगमाइवाहणेणं विणा न | तीरंति । इहमाणेउं ता तप्पयाणकरणाओ आणेह ॥ ३० ॥ तो लद्धसमायारो तासिं वहुयाण सो घणो कुणइ । निय| मज्झज्जे चित्तरूवेसु विनिओगं ॥ ३१ ॥ तण्णायबंधवाणं पुरओ च्चिय तेसिं संमएणेव । पढमाए छारछगणाइछडुणं या वित्त ॥ ३२ ॥ वीयाए महाणसरंधणेण तह कंडणाइणा चैव । तइंयाए नियघरसाररक्खणेणं चउत्थीए ॥ ३३ ॥ गिनायगत्तणेणं सबेसुवि पुच्छणिज्जकज्जेसु । तह परिणयम्मि सयले अणइक्कमणिजणत्तेण ॥ ३४ ॥ बुद्धिपभावो एसो घणस्स जं तेण जाणियसरूवा । अणुरुवकज्जकरणे निजोजियाओ नियवहूओ ॥ ३५ ॥ सरयसमयेंदुमंडलधवला वहला महीयले सयले । उच्छलिया जा कित्ती धणवणिणो सावि बुद्धिफलं ॥ ३६ ॥ अह अन्नो वि उवणओ गे रोहिणी नायमि । भणिओ सुधम्मगणनायगेण एवं सुणेह जहा ॥ ३७ ॥ जह सो धणो तह गुरू जह णायजो तहा समणसंघो । जह वहुया तह भवा जह सालिकणा तह वयाई ॥ ३८ ॥ जह सा उज्झियनामा ते सालिकणे समुज्झिऊण परं । पत्ता णाइज्जंतं तह कोइ जिओ कुकम्मवसा ॥ ३९ ॥ सयलसमीहियसंसिद्धिकारए तारए भवदुहाओ । वज्जेत्तु वए मरणाइआवयाओ नियच्छेइ ॥ ४० ॥ अन्नो उण वीयवहुब वत्थभोयणजलाइला भेणं । भोत्तुं ताई परलोयदुक्खलक्खक्खणी होइ ॥ ४१ ॥ तत्तो च्चिय जो अन्नो सो ताई जीवियंव रक्खेत्ता । तइयावहुब जायइ सबेसिं
रोहिणीवणिगू- (वधूचतुष्क ) नि०
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