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श्रीउपदेशपदे
॥ १३१ ॥
अस्थि अदूरे नयरे सेयंबिया नाम तन्निवसुएहिं । आगंतूणं विरहे आरामो सबओ भग्गो ॥ १७ ॥ तप्पडिनिवेस पूरियमणेहिं आरामवइनिमित्तं सो । तइया गओ वणे कंटियाण कहिओ य वृत्तो ॥ १८ ॥ गोवालेहिं सरोसो ताओ छड परसुहत्थो । रोसेण धमधर्मेतो कुमराभिमुहं तओ चलिओ ॥ १९ ॥ जमदूयाकारधरं दहुं संतु माणसा ते उ । अइवेगेण पलाणा कुहाडहत्थो पधाविंतो ॥ २० ॥ विस्सरियप्पा खड्डुम्मि निवडिओ सो कुहाडओ अड्डो । आवडिओ तत्थ सिरं दोभायं तत्थ संजायं ॥ २१ ॥ तत्थेव य वणसंडे दुट्ठो दिट्ठीविसो अही जाओ । रोसेण य लोभेण य तेरुक्खे रक्खर अभिक्खं ॥ २२ ॥ जे केवि तावसा तत्थ आसि ते तेण दाहमुवणीया । जे पुण इयरे ते कहवि लद्धपाणा गया दूरं ॥ २३ ॥ सोवि वणं परियंचइ तिसंझमह सउणयंपि जं तत्थ । पडइ पसारियदिट्ठीविसग्गिणा तं खणा डहइ ॥ २४ ॥ पत्तो भगवं वीरो पवन्नसमणत्तणो दुइज्जम्मि । वरिसे उत्तरचावालमज्झ सम्मि कणखलए ॥ २५ ॥ सजगजीव गोयर करुणापरमाणसो महाभागो । तस्संबोहणहेडं जक्खघरे संठिओ पडिमं ॥ २६ ॥ दिट्ठो तेण तओ आसुरुत्तभावं दढं धरंतेण । किं न वियाणसि एत्थं ममंति सूरं निभालित्ता ॥ २७ ॥ निज्झाइ सामिसालं पच्छा पेच्छेइ जान उज्झे । तो पासिय वारतिगं कुद्धो तत्थेव गंतूण ॥ २८ ॥ भक्खेइ सुदिढदाढा विसाकुलो तम्मि अंगम्मि । मा मे वरं डिही अवकमेत्ता तओ ठाइ ॥ २९ ॥ एवंपि तिन्नि वारे दंसइ विणस्सइ न किंपि जा भयवं । ता तिवामरिसवसो जिणरूवं पासिउं लग्गो ॥ ३० ॥ अमयमयसरीरत्तणेण जगबंधवस्स जगगुरुणो । रूवं पलोयमाणस्स तस्स सवि - साणि अच्छीणि ॥ ३१ ॥ तस्समयं चिय विज्झायभावमायाणि भगवया भणियं । उवसमसु चंडकोसिय! न चंडभावो
चंडकोशिकसर्पद्वा०
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