________________
उच्छलियातुच्छजसो गच्छो किल कोइ आसि गुणनिलओ। गीयत्वसुरी दिक्खासिक्खानिक्खित्तनियचित्तो ॥१॥ विहरतो सो पत्तो वसंतपुरनामगे पुराणपुरे। साहुजणोचियवसहीए संठिओ निद्वियवियारो ॥२॥ तत्थेगो खवगमुणी
अदेसि छट्ठमाइतवनिरओ। सो अन्नया पभाए वासियभत्तस्स पारणगे॥३॥ भिक्खायरियाए गओ तवोकिलामेण | निरुवओगेण । मंडकिया चलणेण चंपिया तेण निहया य॥४॥ पच्छा गच्छंतेणं दिट्ठा सा खुडएण तो भणिओ।
एसा मंडुकलिया खवग! पमाएण ते विगया ॥ ५॥ संजायरोसलेसो भणाइ खमगो इमाओ णेगाओ। लोएण मारियाओ अहं किमेत्थावरज्झामि ॥ ६ ॥ णूणं संझाकाले सयमेवावस्सयम्मि सूरीणं । आलोएही तुहिक्कयाए थक्को ना चोपद ॥ ७ ॥ खुलो वियालकाले सो खवगो सेसएऽवराहवए । आलोइत्ता जावुवविट्ठो इयरेण तो भणियं ॥८॥ किं ते सा विस्सरिया मंडकी जा या पमाएण? । ताहे सुछ परुट्ठो पहणामि इय पयंपतं ॥ ९॥ खुडगमेयं परिभाविऊण | उद्धाइओ वहनिमित्तं । अइतिक्खकढिणकोणे थंभम्मि समावडियसीसो ॥ १०॥ असुहज्झाणपहाणो मओ विराहियवएम देवेसु । जोइसिएसुववन्नो तओ चुओ कणखलपएसे ॥ ११॥ तावससयाण पंचण्ह कुलवइस्स सुयत्तणं पत्तो। उयरम्मि तायसीए कमेण गम्भा विणिक्खंतो॥ १२ ॥ ठवियं णामं से कोसिउत्ति अइरोसणो सहावेण । अन्ने वि संति
वो कोसियनामा मुणी तत्थ ॥ १३ ॥ तो तावसेहिं नामं विहियं जह चंडकोसिओ एस । कालक्कमेण सो पुण कुलहवइपयपुत्तओ जाओ ॥१४॥ वणसंडे तत्थ अईव मुच्छिओ तावसाण णो देइ । तेसिं छेत्तुं पुप्फफलाइ अलहंतगा संता
॥ १५ ॥ पगया दित्तो दिसिं ते जेवि य गोवालमाइया तत्थ । तं पिय हेतुं धाडेइ दूरमोयरइ जह ण पुणो ॥ १६ ॥