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श्रीउपदेशपदे
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तुला वयं भविसामो | मा कुणसु अहो गोयम ! सोगं ता धीर गंभीर ! ॥ २३ ॥ अह गोयम निस्साए अन्नेसि मुणीण वोहणनिमित्तं । दुमपत्तयंति नामगमज्झयणं पन्नवेइ जिणो ॥ २४ ॥ जहा “दुमपत्तए पंडुयए जहा निवडइ रायगणाण | एवं मणुयाण जीविए समयं गोयम ! मा पमायए ॥ १ ॥" इत्यादि ॥ छट्ठट्ठमाइतवमुग्गरूवमेसो सया निसेतो । मज्झिमपुरीए पत्तो विहरंतो भगवया सद्धिं ॥ २५ ॥ कयवासावासाणं तत्थ दुवेण्हं पि वोलिए संते । पक्खाण सत्तगे तस्स मोहवोच्छेयणनिमित्तं ॥ २६ ॥ कत्तिय अमावसाए समीवगामम्मि पेसिओ पहुणा । गोयम ! इमम्मि गामे वोह सावगं अगं ॥ २७ ॥ तत्थ गयस्स वियालो जाओ तत्थेव तं निसिं वुत्थो । जा नवरि पेच्छइ सुरे निवयंते उप्पयंते य ॥ २८ ॥ उवउत्तेणोवगयं भयवं कालं गओ जहा अज्ज । तेण पुण विरहभीरुयमणेण न कयाइ चित्तम्मि ॥ २९ ॥ विरहदिणो परिभावियपुचो सो तक्खणं विचिंतेइ । भगवमहो निन्नेहो जिणाहिवा एरिसा हुंति ॥ ३० ॥ जं नेहरागपरिगयचित्ता जीवा पडंति संसारे । एत्थावसरे णाणं उप्पन्नं गोयमपहुस्स ॥ ३१ ॥ केवलिकालो बारस वासा जाओ ता विहारो य । जह भगवओ तहा नवरमइसएहिं विरहिओत्ति ॥ ३२ ॥ पच्छा अज्जसुहम्मस्स निक्खवित्ता गणं गओ सिद्धिं । पच्छा केवलणाणं अज्जसुहम्मस्स उप्पणं ॥ ३३ ॥ अट्ठ वरिसाणि सो वि य विहरित्ता केवलित्तणपहाणे । तो अज्जजंबूनामे गणं ठवित्ता गओ सिद्धिं ॥ ३४ ॥ भगवंतकालकरणेण दुम्मणा देवदाणवाईया । तं नयरिं मज्झिमनामपि पावंति अभणींसु ॥ ३५ ॥ इति ॥
१ ख. अभणीसु ।
श्रीगौतमस्वामिचरितम्
॥ १२८ ॥