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________________ श्रीउपदेशपदे नासिक्कसुंद रीनंद द्वा० ॥११५॥ नमिरसिरेणं सधेणवि वेदिओ परियणेणं । लग्गो नियत्तिउं तेण चिंतियं जामि सयमेव ॥ ९॥ जा में मुंचसु एवं नीओ उज्जाणमझभूमीए । करकलियसाहुभाणं दहूं तं सोवहासेण ॥ १०॥ भणियं पुरलोगेणं पवइओ एस सुंदरीनंदो विहिया विरागजणणी य देसणा साहुणा सुइरं ॥ ११॥ सो सुंदरीए तिवं रागं वहमाणओ न मग्गम्मि । लग्गइ जाव विउवियलद्धी भगवं समुणिसीहो ॥ १२॥ चिंतेइ न अन्नेणं केणावि विबोहिउँ उवाएण । तीरइ ता अहिगयरं लोभ हाणं पदंसेमि ॥ १३॥ भणिओ मेरुं नियकिरणजालकवुरियगयणपेरंतं । दंसेमि सुंदरीविरहभीरुओ सो न मन्नेइ २॥१४॥ भणियं पुणो मुहुत्तेण चेव एत्थागर्म करिस्सामो। पडिवणमि पयट्टो हिमवंतगओ विउवेद ॥ १५॥ एगं वानर६ जुयलं अण्णे पुण बिति सबमेव भयं । भणिओ मुणिणा भो! सुंदरीए तह वानरीए य ॥ १६ ॥ कालठयरा सो भणइ । वाढमघटतं इमं भाइ । कह मेरु कह सरिसव केणत्ति इय भासिए तेण ॥ १७॥ विजाहरमिहुणमहो पदंसियं तत्थ पुच्छिओ भणइ । नाइविसेसा तुल्लत्तमेव पाएण पडिहाइ ॥ १८॥ पच्छा खणेण सुरमिहुणमेगमालोयगोयरे पडियं । । पुट्ठो य साहुणा भणइ भगवमेईए एगम्मि ॥ १९॥ नो वानरीवि य समा भणियं मुणिणा इमा उ धम्मेण । थेवेणवि * उवल भइ जायं सड्डाणमेयत्ति ॥ १९॥ पच्छा च्छिन्नममत्तो सो तीए सुंदरीए पबइओ । जाओ सामन्नरओ सिवपहलग्गो न पडिभग्गो ॥ २०॥ मुणिणो एसा परिणामिया य बुद्धी एस तारिसो जीए । नीओ विरागमगं अणवज्जगुण च पबजं ॥ २१॥ इति ॥ अथ गाथाक्षरार्थ:-नासिक संदरीणंद' इति द्वारपरामर्शः। तस्य च 'भाइरिसि'त्ति भ्राता ऋषिः अभूत् । स च HOLSOS
SR No.010796
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapvijay
PublisherMuktikamal Jain Mohan Mala
Publication Year1979
Total Pages1008
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size45 MB
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