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श्रीउपदेशपदे
तणाओऽवमाणणिजा कया दूरं ॥ १३ ॥ सेसाओ पुष्फतवोलवसणसिंगारचंगियंगीओ। घरदेवयव बाढं लद्धप्पसरात चाणाक्यपरिभमंति ॥ १४॥ जाया अघिई कह एगमाइपिउगावि परिहरं पत्ता । मोत्तूण विहवमेगं न वल्लहो कोवि कस्सावि ?
द्वारम् ॥ १५ ॥ इय हिययधरियमचू चाणकगिहे समागया रुयइ । सानिब्बंधम्मि कए कहेइ से सबवुत्तंतं ॥१६॥ थीपरि-18 भवो असझोत्ति तक्खणा धणगवेसगो जाओ।नंदो पाडलिपुत्ते तइया दियदक्खिणं देइ ॥ १७ ॥ स गओ तत्थ तया पुण पुचिल्लाणं कमेण नंदाणं । कत्तियचरिमतिहीए विस्थिण्णा आसणा सवे ॥ १८ ॥ जं पढममासणं तत्थ लग्गसुद्धि
तहाविहं कलिउं । सो सहसा उवविट्ठो भणियं तो सिद्धपुत्तेण ॥ १९॥ नंदेण समं तत्थागएण एएण माहणेण तुहं । || वंसच्छायं सर्व अकमिऊणं निविट्ठति ॥ २०॥ भणिओ दासीए तओ भयवं! बीयम्मि आसणे निबस । अथित्ति
भणिउं ठविया तेण निया कुंडिया तत्थ ॥ २१॥ तइए दंडो तुरिए गणोत्ति या बंभसुत्तु पंचमगे । एवं अक्कममाणो धिट्ठो बडुत्ति निच्छूढो ॥ २२ ॥ एसो पाउक्खेवो पढमो देसंतराभिगमरूवो । अह अन्नया विसंको बहुजणपच्चक्खमुच्चरइ ॥ २३॥ "कोशेन भृत्यैश्च निबद्धमूलं पुत्रैश्च दारैश्च विवृद्धशाखम् । उत्पाव्य नन्दं परिवर्त्तयामि महाद्रुमं वायुरिवोग्रवेगः" ॥१॥ निजाओ नगराओ ताओ मग्गइय रायपयजोग्गं । पुरिसं निसुयं च पुरा बिवंतरिओ निवोहोहं ॥ २४ ॥ महिमंडलं भमंतो पत्तो तो मोरपोसगग्गामे। चाणको परिवायगवेसधरो नंदतणयम्मि ॥ २५॥ तम्मि य गामे
गामाहिवस्स धूयाए डोहलो जाओ। चंदपियणम्मि न य सो सकिज्जइ पूरिसं कहवि ॥२६॥ तो सा अपुजमा- ॥१०९॥ घणम्मि तम्मि विच्छायवयणतामरसा । अञ्चतमिलाणतणू जीवियसेसत्तणं पत्ता ॥ २७ ॥ भिक्खं गवेसमाणो सो पुट्ठो