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श्रीउपदेशपदे
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ततव कम्मनिम्महियपावा । ओमंति दूरदेसे पेसियनीसेससीसस्स ॥ १८ ॥ जंघावलपरिहीणस्स तस्स गागिणो ठियस्स तहिं । सूरिस्स असणपाणं निवभवणाओ पणामेइ ॥ १९ ॥ एवं वच्चं तम्मी काले अचंतसुद्धपरिणामा । निणियघाइकम्मा संपत्ता केवलालोयं ॥२०॥ “ पुचपवत्तं विणयं च केवली अमुणिओ न लंघेइ” । इइ सा पुबकमेणं गुरुणो असणाइ उवणेइ ॥ २१ ॥ एगम्मि य पत्थावे सिंभेणव्भाहयस्स सूरिस्स । जायाए चित्तभोयणवं छाए उचियसमयम्मि ॥ २२ ॥ तीए य तहच्चिय पूरियाए विम्हइयमाणसो सूरी । भणइ कहं नायमिमं माणसियं मज्झ तए अजो ! ॥ २२ ॥ जं उवणीयं अइदुलहंपि भोजं अकालपरिहीणं ? । तीए भणियं णाणेण, केण, पडिवायरहिएण ॥ २३ ॥ धी धी मए अणजे कहमिमो केवली महासत्तो । आसाइउत्ति सोगं तो सूरी काउमारद्धो ॥ २४ ॥ मा मुणिवर ! सा सोगं अमुजिंत केवलीविजओ । पुचट्ठिई न भिंदइ एवं तीए य पडिसिद्धो ॥ २५ ॥ चिरसुचरियसामन्नो वि किं न निव्वुइह लभिस्सामि । इइ संसयं कुणंतो य तीए सूरी पुणो भणिओ ॥ २६ ॥ संदेहं कीस मुणीस ! कुणसि निन्दुकणं जे हुं । सुरसरियमुत्तरंतो काहिसि कम्मक्खयं तुमवि ॥ २७ ॥ एवं निसामिऊणं सूरी नावाए आरुहिय गंगं । अइलंघिउँ पत्तो परतीरगमाभिलासेण ॥ २८ ॥ नवरं जत्तो जत्तो स निसीयइ कम्मदोसओ तत्तो । नावादेसो मज्जइ सुरसरिसलिलम्मि अत्थाहे ॥ २९ ॥ सबविणासं आसंकिऊण निजामएहिं तह खित्तो । अन्नियपुत्तायरिओ नावाहिंतो सलिलमज्झे ॥ ३० ॥ अह परमपसमरसपरिणयस्स सुपसन्नचित्तवित्तिस्स । सबप्पणानिरुंभियनीसेसावदुवारस्स ॥ ३१ ॥ दघेणं भावेण य परमं निस्संगयं उवगयस्स । सुविसुद्ध माणदढसुकझाणनिम्महियकम्मस्स ॥ ३२ ॥ जल संधारगयस्स
देवीद्वा०
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