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तीए पुण जमलगत्तणुप्पन्नो। पुत्तोत्ति पुप्फचूलो धूया उण पुष्फचूल त्ति ॥२॥ ताणि य परोप्परं गाढपणयवंताणि पेच्छिउँ रणा। अवियोगकए परिणावियाणि अन्नोन्नमेव तओ ॥३॥ पुप्फवई तेणं चिय निवेएणं पवजिङ दिक्खं । देवत्तं संपत्ता अह सा करुणाए सुमिणम्मि ॥४॥ नरए नेरइए वि य दरिसइ तह तिक्खदुक्खसंतत्ते । तीए पडिवोहणट्टा सुहसुत्ताए पुप्फचूलाए ॥५॥ अह ते भीसणरूवे दहूं साझत्ति जायपडिवोहा । साहेइ नरयवित्तं नरवइणो सो विवाहरि ॥६॥ पासंडिणो असेसे पुच्छइ देवीए पच्चयनिमित्तं । भो! केरिसया नरया तह तेसु दुहं ति साहेह ॥७॥ नियनियमयाणुरूवेण तेहिं सिट्ठो नरयवुत्तंतो। नवरं न य पडिवन्नो देवीए तयणु भूवइणा ॥८॥ अन्नियपुत्तायरिओ बहुस्गो तट्टिओ य थेरो य । वाहरिऊणं पुट्ठो जहडिओ तेण सिट्ठो य॥९॥ तो भत्तिनिव्भराए भणियं देवीए पुप्फचूलाए। किं भयचं तुमएवि हु दिट्टो सुमिणम्मि एसो त्ति ॥ १०॥ गुरुणा भणियं भद्दे। जिणिंदसमयप्पईवसामत्था । तं नत्थिन नज्जइ कित्तियमेत्तं नरयवित्तं ॥११॥ अवरसमए य निस्सातीए जणणीए दंसिओ सग्गो । सुमिणम्मि विम्यावहविभूइरेहंतसुरनियरो ॥ १२ ॥ पुर्व पिव पुणरवि पत्थिवेण ता जाव पुच्छिओ सूरी । तेणावि तस्स रूवं निवेइयं हरिसिया देवी ॥ १३ ॥ चलणेसु निवडिऊणं भत्तीए जंपिउं समाढत्ता । कह होज नरयदुक्खं कह वा सुरसो
खसंपत्ती? ॥ १४ ॥ गुरुणा भणियं भद्दे ! विसयपसत्तिपमोक्खपावहिं । पाविजइ नरयदुहं तच्चागेणं च सग्गसुहं ॥१५॥ ताहे सा पडिबुद्धा विसंव मोत्तूण विसयवासंगं । पवजागहणत्थं आपुच्छइ पत्थिवं तत्तो ॥१६॥ अन्नत्थ काविहरियचं तुमए न कयावि इइ पइन्नाए। कहकहवि अणुनाया नरवइणा विरहविहरेण ॥ १७ ॥ घेत्तूण य पबज विचि
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