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श्रीउपदेशपदे
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हरा तम्म रायमणुपत्ता । पभणेइ जया तुह देइ वेयणं एस मे ताओ ॥ ३ ॥ तइया तुमं विभग्गसु तुरयं काउं परिक्खमणिं । कहिओ य एसुवाओ वीसत्थेसुं तुरंगेसु ॥ ४ ॥ जो तुरओ संतासं नो वच्चइ तत्थ तं विमग्गे । तेणावि पडिसुयं तीइ वयणमाणंदियमणेण ॥ ५ ॥ वेयणदाणावसरे पुबिंपि परिक्खिए दुवे तुरए । सो मग्गइ तो भासइ अस्साहिवईवि सप्पणयं ॥ ६ ॥ एएसिं अस्साणं मज्झे एए तुरंगमा लट्ठा। ता जइ एए गिह्नसि ता सचे किं न गिलेसि ? ॥ ७ ॥ सो भइन सबेर्हि ओयणं मज्झ, चिंतियं ताहे । अस्साहिवेण जह एस दारओ लक्खणनिहाणं ॥ ८ ॥ कहमन्नह
hi अस्से इस वीसमइ दिट्ठी । ता नियधूयादाणेण गेहजामाउओ कज्जो ॥ ९ ॥ कहियं नियभजाए सा नेच्छइ तो भाइ हे मुद्धे ! | लक्खणजुत्तो एसो होही मे गेहवुढिकरो ॥ १० ॥ सुण एत्थमुदाहरणं जह वट्टइ एत्थ दारगो कोवि । नियधुया माउ लगेण तस्स दिन्ना परं गेहे ॥ ११ ॥ न करेइ किंपि कम्मं अडवीइ गओ विरत्तओ एइ । खिंसिज्जइ भज्जाए तमकिंचिकरो कहं होसि १ ॥ १२ ॥ छट्ठे मासे लद्धं तं दारु सलक्खणं हवइ जत्थ । दमसयसहस्समुल्लो sat घडिओ य सो विहिणा ॥ १३ ॥ एगस्स धन्नवणिणो दिन्नो लद्धं जहिच्छियं मुलं । तस्स गिहे तेणेगा जाया तस्साणुभावाओ ॥ १४ ॥ एवं लक्खणजुत्ते गिहे पविट्ठम्मि वड्ढइ कुडुवं । दिन्ना नियया धूया लक्खणजुत्तस्स तस्स तओ ॥ १५ ॥ अहवा वारवईए पुरीए कण्हम्मि रज्जमणुपत्ते, । कइयावि अस्सवाणियहत्थाओं किणिउमाढत्ता – ॥ १६ ॥ हरिणा कुमरेहिं तहा तुरया, कुमरेहिं तत्थ थूलतणू । एए किल बलवंतो कलिकणंगीकया ते उ ॥ १७ ॥ कण्हेणेगो अदुब्बलोवि गहिओ सलक्खणो काउं । तो ते तं हसमाणा भांति कहमेरिसो गहिओ ! ॥ १८ ॥ पडिभणियं अह
अश्व० दृष्टान्त
द्वयम्
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