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अक्सि तरह भणइ बडुओ पहुं लवइ ॥ १२०॥ मुणियं च तेहिं एसो कप्पेण वसीकओन अम्ह हिओ। कहमन्नह हाइसलो यहप्पलावी को कप्पो ॥ १२१ ॥ संजायचित्तभेया दिसोदिसिं ते पलाइ लग्गा । भणिओ कप्पेण नियो पिच्छा एसिं विलग्गेहि ॥ १२२ ॥ गहिया हत्थी आसा य बहुधणं सिविरसंतियं तेसिं । ठविओ निवेण सो तम्मि चेव
कपो नियपयम्मि ॥ १२३ ॥ सव्वंपि रजकजं वसीकयं तेण निययबुद्धीए । मंती पुरविरुद्धो धणियं च निरुद्धओ विहिओ ॥ १२४ ॥ अइतिक्खोवि दवग्गी दहंतओ मूलरक्खणं कुणइ । मिउसीयलो जलोहो समूलमुम्मूलइ दुमोहं ॥ १२५ ॥ परिभावितेण इमं तेण ततो केवलेण सामेण । नियलच्छिमसहमाणा समूलमुम्मूलिया रिउणो ॥ १२६ ॥ जह जलणार मुवन्नं उत्तिण्णं भूरिभासुरं होई। तह सो वसणाउ तओ पत्तो अइसमहियं तेयं ॥ १२७ ॥ अच्चुग्गयवेरग्गेण तेण परमं समुन्नई नीओ। धम्मो जिणाण जिणचेइयाण पूयाइकरणेण ॥१२८ ॥ सुइ सीलाओ कुलबालियाउ वीवाहियाउ नियवंसो। नीओ विसालभावं परमं तोसं च बंधुजणो ॥ १२९ ॥ तस्सेसा वेणइगी बुद्धी बुद्धाखिलत्थस-13 त्यस्म । कालेण समाराहियजिणवयणो सो दिवं पत्तो ॥ १३० ॥ इति ॥ | आवा सोमडनामो चित्तयरसुओ इमीइ आहरणं । जह तस्सेसा बुद्धी संजाया वोच्छमहमित्तो ॥ १॥ सागेयं । नाम पुरं समधि सव्वत्थसाहणसमत्थं । उत्तरपुरच्छिमाए दिसाइ अइरेगरमणिजं ॥२॥ सुरपियजक्खाययणं तत्थ
द्वियपट्टनिचरम्ममहं । पवणपणोलणचलघवलधयवडाडोवरमणिज्जं ॥३॥ सन्निहियपाडिहेरो सो जक्खो विविहचिजातकम्मेहिं । पइवरिसं चित्तिज्जइ कीरइ य महामहो तस्स ॥४॥ नवरं चित्तियमेत्तो तं चेव य चित्तकारगं हणइ ।
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