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श्रीउपदेशप
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जइ पुण नो चित्तिज्जइ मारिमपारं पुरे कुणइ ॥ ५ ॥ पाणभएण पलाया चित्तयरा चिंतियं च नरवइणा । एस अचित्तितो होही अम्हाणवि वहाय ॥ ६ ॥ सव्वे झत्ति निरुद्धा पलायमाणा पहंतरालम्मि । संकलिया गा तेसिं सव्वेसि नामाईं ॥ ७ ॥ लिहियाई पत्तए अह घडम्मि छूढाई मुद्दिओ घडओ । जो जस्स जम्मि वरिसे नामुग्धाडो तओ तमि ॥ ८ ॥ चित्तेइ जक्खमेयं एवं कालो गओ बहू जाव । ता अन्नया कयाई कोसंबीओ वरपुरीओ ॥ ९ ॥ एगो चित्तरसुओ जणगघराओ पलाइओ तत्थ । सागेयचित्तगर गेहमागओ सो य थेरिसुओ ॥ १० ॥ एसो य निव्विसो दिट्ठो थेइ निययपुत्ताओ । मित्तीए जंति दिवसा तेसिं नियकम्मनिरयाणं ॥ ११ ॥ अह कहवि तम्मि रिसे थेरीपुत्तस्स वारओ जाओ । सा अइविच्छायमुही पुणो पुणो रोविडं लग्गा ॥ १२ ॥ भणिया तेण म रोयसु अम्मे ! सच्चं भलामि अद्दमेत्थ । किं मे तुमं न पुत्तो अप्पाणं तेसि जं वसणे ॥ १३ ॥ इय जंपिरीवि थेरी वयणेहिं तेहिं तेण संठविया, । तेणुज्झियसोगभरा जह अंब ! निराकुला चिट्ठ ॥ १४ ॥ नाओ तेण उवाओ विणएण जहा सुरा पसीयंति । तो उत्तमसविण्यसमन्निएण मे इत्थ होयव्वं ॥ १५ ॥ विहियं छट्ठक्खमणं वंभचेराइओ तहा विणओ । वन्नगकुच्चगमल्लगमाइ सव्वं नवं च कथं ॥ १६ ॥ ण्हाओ सदसे वत्थे परिहित्था पोत्तियाइ मुहबंधं । काऊणऽट्ठगुणाए कलसेहिं नवेहिं दावित्ता ॥ १७ ॥ तं चिंतेइ सपणयं पच्छा पाएसु निवडिओ भणइ । खमह जमेत्थऽवरद्धं मए तओ तोसमावण्णो ॥ १८ ॥ जक्खो भणेइ जं तुज्झ रोयए तं वरेहि वरमेगं । सो भणइ लोगमारिं मा कुण एसुच्चिय वरो मे ॥ १९ ॥ भणियं जक्खेण जहाजं तं न हओ हणामि नो अन्ने । तो अन्नं वरमेतो मग्गसु दूरं पसन्नो ते ॥ २० ॥ तो जस्स एग
चित्रकार पुत्रद्द०
॥ ७७ ॥