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श्रीउपदेशपदे
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रायगिहं इह नयरं समत्थि नयरम्मपरिसरुद्देसं । राया तत्थ पसेणइयनामगो पालई य रज्जं ॥ १ ॥ सेणियनामा पुत्तो जुत्तो निवलक्खणेहिं सधेहिं । सयलसुएसु पहाणो तस्सासि सहावओ गुणवं ॥ २ ॥ पोरिससज्जं रज्जं पुन्ने संतेवि एस जणवाओ । तो काहामि परिक्खं सुयाण इय चिंति रण्णा ॥ ३ ॥ अन्नदिणे सबेवि हु भणिया तणया जहा मिलियहिं । तुभेहिं भोत्वं एवं पीई कया हवई ॥ ४ ॥ जं भणइ महाराओ तं काय ति मउलियकरेहिं । पडिसुयमिमेहिं सम उवविट्ठा भोयणस्स कए ॥ ५ ॥ तत्तो य भायणाई पायसभरियाई तेसिं दिन्नाई । जाव पवत्ता भोक्तुं मुक्का पारद्धिसुगाओ ॥ ६ ॥ सद्दलरुद्दचरणा थालाभिमुहं समागया जाव । सेणियवज्जकुमारा ताव भएणं पलाया ते ॥ ७ ॥ सेणियकुमरेण पुणो घेणं तेसिं ताई थालाई । खित्ताइं अभिमुहाई लग्गा ते पायसे तम्मि ॥ ८ ॥ भुक्तं नियथालगयं पायसमेएण धीरचित्तेण । दिट्ठो एस वइयरो निवेण तो तम्मि संतुट्टो ॥ ९ ॥ नूणं सुनिउणबुद्धी एस कुमारो जमेव वसणेवि । नो चुक्को नियकज्जा धरिया सुणगावि संतोसे ॥ १० ॥ एवं रज्जाउ इमो खोहिज्जतोवि अन्नराईहिं । नो रज्जपरिच्चायं काही दाणप्पयाणाओ ॥ ११ ॥ ता संपइ नो गोरवजोग्गो एसो जओ इमे कुमरा । उप्पन्नमच्छरा मारिहिंति एयंति मुणिऊण ॥ १२ ॥ दिट्ठो अवधूयगईए सेणिओ तो न जुत्तमिह मज्ज । इय चिंतिय परिचलिओ कुमरो देसंतरा - भिमुह ॥ १३ ॥ पत्तो विन्नाइ नईइ तीरभागप्पइट्ठियत्तेण विन्नायडाभिहाणे पुरम्मि परपउरजणकलिए ॥ १४ ॥ परिमियनियभिच्चेहिं – पसंगओ संगओ पविट्ठो य । अभितरम्मि तत्तो पत्तो एगस्स सेट्ठिस्स ॥ १५ ॥ खीणविहवस्स हट्ट - म्मिं तत्थ लद्धासणी समुंबइट्ठो । दिट्ठो आसि निसाए जहाssगओ मम गिहे जलही ॥ १६ ॥ सुविणो मणोहरो इय
'खड्डग' द्वारम्,
तन्त्राभय
कुमारनिद०
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