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________________ - - - -~~ www indivn vvvvv AvM विमोह ~r nnn . nor 1000r -- - - nir anarrrrr coron वाला भिक्षु तितिक्षा को उत्तम विमोहरूप (मोह से मुक्ति-विमोह) और हितरूप समझकर समाधि मे रहे । [ २२६, १६-२५ ] क्रमशः वर्णन की हुई इन नीनो मरण विधियो को सुनकर, उनको अपूर्व जान कर और प्रत्येक तप के बाह्य और आभ्यन्तर दोनो भेदो को ध्यान में रख कर धीर, वसुमान, प्रज्ञावान और बुद्ध पुरुप धर्म के पारगामी होते हैं। [१-२] टिप्पणी-कामवासना के लिये मूलमें 'शीतस्पर्श' शब्द है । शीतम्पर्श शब्द से ठंड-गरमी और स्त्री के उपद्रव का अर्थ लिया जाता है । यदि कोई दुष्ट स्त्री भिक्षु को घर मे ले जाकर फंसा ले और वहां से भ्रष्ट हुए विना वाहर आना शक्य न हो तो वह चाहे जिस प्रकार से वही आत्मघात कर ले, अथवा दुर्बल शरीर का भिक्षु ठंड-गरमी या रोगो के दुखो को बहुत समय तक सहन न कर सकता हो तो भी अात्मघात कर ले । जैन शास्त्र में भक्तपरिज्ञा, इत्वरित और पादपोपगमन मरणविधिया विहित है। पर ये दृढ सकल्प वाले मनुष्यो के लिये है । सूत्र २१५ से १०-११ तक ये भक्तपरिजा मरण विधि का वर्णन है । इत्वरित मरण का वर्णन सूत्र २२१ से २२२ तक है और २२५-२२६ में पादपोपगमन (वृपके समान निश्चेष्ट होना) का वर्णन है।
SR No.010795
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGopaldas Jivabhai Patel
Publication Year
Total Pages151
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size5 MB
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