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________________ - याचाराग सूत्र हो वह यदि दीमक आदि से भरा हुया हो तो उसको त्याग कर दूसरा जीव रहित पटिया प्राप्त करे ! जिससे पाप होता हो ऐसा कोई अवलम्बन न ले । सब दुखो को सहन करे और उससे अपनी प्रात्मा को उत्कृष्ट बनावे । सत्यवादी, प्रोजस्वी, पारगामी, क्लहहीन, वस्तु स्वरूप को समझने वाला संसार मे नहीं फैमा हुया वह मिनु क्षणभंगुर शरीर की ममता त्याग कर और अनेक संकट सहन कर के जिनशासन में विश्वास रखकर भय को पार कर जाता है । यह उसका मरण का अवपर है, यह उसके संसार को नष्ट करने वाला है वही विमोहायतन (धर्माचार) हित, सुख, जेम और सदा के लिये नि श्रेयसरूप है । [१७, १८, २२२] उससे भी उत्कृष्ट निम्न मरण विधि है। वह घास मांग ला कर बिछावे, उस पर बैठ कर शरीर के समस्त व्यापार और गति का त्याग कर दे । दूसरी अवस्थानो से यह उत्तम अवस्था है। वह ब्राह्मण अपने स्थान को बराबर देख कर अनशन स्वीकार करे। और सब अंगो का निरोध होता हो तो भी अपने स्थान से भ्रष्ट न हो । मेरे शरीर में दुख नहीं है, ऐसा समझ कर समाधि मे स्थिर रहे और काया का सब प्रकार से त्याग करे। जीवन भर सफ्ट और आपत्तियाँ पार्वेगी ही, ऐसा समझ कर शरीर का त्याग करके पाप को अटकाने वाला प्रज्ञावान भिक्षु सब सहन करे। ज्ञणभगुर ऐसे शब्द आदि कामो में राग न करे और कीर्ति को अचल समझ कर उन से लोभ न रखे। कोई देव उसको मानुपिक भोगो की अपेक्षा शाश्वत दिव्य वस्तुग्रो से ललचावे तो ऐसी देवमाया पर श्रद्धा न रखे और उसका स्वरूप समझ कर उसका त्याग करे । मत्र अर्थों में अमर्छित और समाधि से ग्राायग्य के पार पहचाने
SR No.010795
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGopaldas Jivabhai Patel
Publication Year
Total Pages151
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size5 MB
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