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________________ आठवाँ अध्ययन -(0) विमोह 2926 (1) प्रार्य पुरुषो द्वारा समभाव से उपदेश दिया हुआ धर्म सुनकर और समझ कर, बोध को प्राप्त होने पर अनेक बुद्धिमान योग्य अवस्था में ही संयम धर्म को स्वीकार करते है । किसी भी प्रकार की आकांक्षा से रहित वे संयमी किसी की हिसा नहीं करते, किसी प्रकार का परिग्रह नहीं रखते और न कोई पाप ही करते हैं । वे सच्चे ग्रंथ है । [२०७ ] बुद्धिमान भिक्षु ज्ञानियों के पास से जीवो के जन्म और मरण का ज्ञान प्राप्त करके संयम में तत्पर बने । शरीर श्राहार से बढता और दुखो से नष्ट हो जाता है । वृद्धावस्था में शक्तियां कमजोर हो जाने पर कितने ही मनुष्य संयम धर्म का पालन करने में असमर्थ हो जाते हैं । इस लिये, बुद्धिमान भिक्षु समय रहते ही जाग्रत हो कर, दुख पड़ने पर भी प्रयत्नशील और आकांक्षाहीन बन कर संयमोन्मुख बने और दया धर्मका पालन करे । जो भिक्षु कर्मों का नाश करने वाले शस्त्ररूप संयम को बराबर समझता है और पालता है, वही कालज्ञ्, बलज्ञ, मांत्रज्ञ, क्षणज्ञ, विनयज्ञ और समयज्ञ है 1 [ २०८-२०६ ] कितने ही लोगो को आचार का कुछ ज्ञान नहीं होता । हिंसा से निवृत्त न होने वाले उनको जीवो को हनने - हनाने मे अथवा
SR No.010795
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGopaldas Jivabhai Patel
Publication Year
Total Pages151
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size5 MB
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