SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 51
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ NAARAM कर्मनाश mummar __wnnn raanwwwunnarwww.normannnnnnn rrrrinwww - - जैसे पक्षी अपने बच्चो को उछेरते है, वैसे ही वह भिक्षु धर्म में न लगे हुए मनुष्यो को रात-दिन शास्त्र का उपदेश दे कर धीरे धीरे तयार करता है, ऐसा मैं कहता है। [१६१, १८७] कितने ही निर्बल मन के मनुष्य धर्म को स्वीकार करके भी उसको पाल नहीं सकते। अलह्य कष्टो को सहन न कर सकने के कारण वे साधुता को छोड कर कामो की तरफ ममता से फिर पीछे चले जाते हैं। संसार में फिर गिरने वाले उन मनुष्यो के भोग विघ्नों से परिपूर्ण होने के कारण अधूरे ही रहते हैं। वे तत्काल या कुछ समय के बाद ही मृत्यु को प्राप्त होते हैं और फिर बहुत काल तक संमार में भटकते रहते हैं। [१८२] कितने ही कुशील मनुष्य ज्ञानियो के पास से विद्या प्राप्त कर के उपशम को त्याग कर उद्धत हो जाते हैं। कितने ही मनुष्य ब्रह्मचर्य से रहते हुए भी भगवान की प्राज्ञा के अनुसार नहीं चलते। और कितने ही इस अाशा से कि अानन्द से जीवन वीतेगा, ज्ञानियों के शिग्य बन जाते है, तो कितने ही संसार का त्याग करने के बाद ऊब जाने के कारण, कामो में आसक्ति रखते हैं। वे संयम का पालन करने के बदले गुरु का सामना करते हैं [१८] ऐसे मंद मनुष्य दूसरे शीलवान, उपशांत और विवेकी भिन्तुनो को, 'तुम शीलवान् नहीं हो,' ऐमा कहते हैं। यह मंद मनुष्यों की दूसरी मूर्खता है। [१६] कितने ही मनुष्य संयम से पतित होते हैं, पर वे दूसरो के सामने शुद्ध प्राचार की बातें बनाते हैं, और कितने ही श्राचार्य को
SR No.010795
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGopaldas Jivabhai Patel
Publication Year
Total Pages151
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy