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प्राचारांग सूत्र mommmmmmmmmwww mom कहीं राग नहीं रखता । प्रिय और अप्रिय शब्द और स्पर्शी सहन करने वाला वह विवेकी, जीवन की तृष्णा से निर्वेद पाता है और संयम का पालन करके कर्म शरीर को खखेर देता है । [१-६६]
चीर पुरुष ऊंचा, नीचा और तिरछा सब ओर का सब कुछ समझ कर चलता है । वह हिसा आदि से लिप्त नहीं होता । जो अहिंसा में कुशल है और बंध से मुक्ति प्राप्त करने के प्रयत्न मे रहता है, वही सच्चा बुद्धिमान है। वह कुशल पुरुष संयम का प्रारंभ करता है पर हिंसा आदि प्रवृत्तियो का नहीं । [१०२-१०३]
जो एक (काय) का प्रारम्भ (हिसा) करता है, वह छ.काय के दूसरे का भी करता है । कर्म को बराबर समझ कर उसमे प्रवृत्ति न करे । [१७-१०१ ] _ 'यह मेरा है। ऐसे विचार को वह छोड़ देता है, वह ममत्व को छोड देता है । जिसको ममत्व नहीं है, वही मुनि सच्चा मार्गदृष्टा है । [2]
संसारी जीव अनेक बार ऊँच गोत्रमे प्राता है, वैसे ही नीच गोत्रमें जाता है । ऐसा जान कर कौन अपने गोत्र का गौरव रखे, उसमें आसक्ति रखे या अच्छेबुरे गोत्र के लिये हर्ष-शोक करे ? [७७]
लोगो के सम्बन्ध को जो वीर पार कर जाता है, वह प्रशंसा का पात्र है । ऐमा मुनि ही 'ज्ञात' अर्थात् 'प्रसिद्ध' कहा जाता है । मेधावी पुरुष संसार का स्वरूप बराबर समझ कर और लोकसंज्ञा (लोक-प्रवृत्ति) का त्याग करके पराक्रम करे, ऐसा मैं कहता हूं। [१००, १८]