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चत्र
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[ १०६
ऐसा
दूसरे गाय से लौटने पर
या उसका बदला न करे या दूसरे को जा कर ऐसा न केहे कि, 'हे ग्रायुत्मान्, क्या तुझे यह वस्त्र चाहिये ?' और, यदि वह मजबूत हो तो उसे फाड़ न फैके परन्तु काम में लिये हुए उस वस्त्र को मागकर ले जाने वाले को ही दे दे खुद काम में न ले । भिक्षुयो का ऐसा श्राचार सुन कर कोई भिन्तु विचार करे कि, मै थोडे समय के लिये वस्त्र मांग लू और फिर उसे वापिस दूगा तो वह नहीं लेगा तो वह मेरा ही हो जायगा - इसमें उसको दोप लगता है । इसलिये वह ऐसा न करे । [ १५८ ] विवर्ण न करे और विवर्ण को वर्णयुक्त न करे; दूसरा प्राप्त करने की इच्छा से अपना वस्त्र दूसरो को न दे दे, फिर लोटाने के लिये दूसरे से वस्त्र न ले, उसका बदला न करे, अपना वस्त्र देने की इच्छा से दूसरो से ऐसा न कहे कि, 'तुमको यह वस्त्र चाहिये ? " दूसरो को अच्छा न लगता हो तो मजबूत कपडे फाड़ न कैके । मार्ग में कोई लुटेरा मिल जाय तो उससे अपने वस्त्र बचाने के लिये भिक्षु उन्मार्ग पर न चला जावे, प्रमुक मार्ग पर लुटेरे बसते है ऐसा जानकर दूसरे मार्ग न चला जावे, सामने थाकर वे मागे तो उन्हें दे न डाले, परन्तु - २ रे खण्ड के ३ रे अन्य के सूत्र १३१, पृष्ट १८ के अनुसार करे । [ १५१ ]
भिनु वरीयुक्त वस्त्रको
भिनु या भिक्षुणी के श्राचार की यही सम्पूर्णता है ।. 'भाषा' अध्ययन के ग्रन्त- पृष्ट १०४ के अनुसार |