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चौथा अध्ययन
-(०)भापा
___ भापा के निम्न प्रयोग अनाचार रूप है, इनका सत्पुरुषो ने पाचरण नहीं किया। भिक्षु भी इन को समझ कर आचरण न करे। वे हैक्रोध, मान, माया, लोभ से बोलना, जान बुझ कर कठोर बोलना, अनजाने कठोर बोलना आदि। विवेकी इन सब दोपमय भापा के प्रयोगो का त्याग करे।
भिक्षु (जाने विना या निश्चय हुए बिना) निश्चय रूप से नहीं बोले; जैसे कि यही ठीक है या यह ठीक नहीं है, (अमुक साधु को) पाहार पानी मिलेगा ही या नहीं ही मिलेगा; वह उसे खा ही लेगा या नहीं ही खावेगा, अमुक पाया है ही या नहीं ही पाया है। प्राता ही हैं या नहीं ही आता है, ग्रावेगा ही या नहीं ही श्रावेगा। भिक्षु जरूरत पड़ने पर विचार करके, विश्वास होने पर ही निश्चय रूप से कहे। [१३२]
एकवचन, द्विवचन, बहुवचन, स्त्रीलिंग, पुरुषलिंग, नपुंसकलिग, उतम पुरुष, मध्यम पुरुप, अन्य पुरुष, मध्यम-ग्रन्य मिश्रित पुरुप, अन्य-मभ्यम मिश्रित पुरुष, भूतकाल, वर्तमानकाल, भविष्यकाल, प्रत्यक्ष और परोक्ष, इन सोलह प्रकार में से किसी का उपयोग करते समय विचारपूर्वक, विश्वास होने पर ही, सावधानी से, संयमपूर्वक उपरोक्त दोप टाल कर ही बोले । [ १३२ ]