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________________ -गाथा १६ उत्तर- सस्कृत, प्राकृत,-अपभ्रंश, मागधी, पाली, हिन्दी, 'उर्दू, इंगलिश, जर्मनी, फ्रान्च, बगाली, गुजराती, तेलगू, कनाडी, मद्रासी, पजाबी, अरबी और मराठी आदि अनेक प्रकारकी अक्षरात्मक भाषा होती है । यह आर्य म्लेच्छ मनुष्य आदिके होती है । इस भाषासे • व्यवहारकी प्रवृत्ति होती है। । प्रश्न २३- अनक्षरात्मक भाषा किनके होती है ? उत्तर- द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, असंज्ञो पञ्चेन्द्रिय व सज्ञी पञ्चेन्द्रियतियंचोके अनक्षरात्मक भाषा होती है । सर्वज्ञदेवको दिव्यध्वनि -भी अनक्षरात्मक भाषा कहलाती है। प्रश्न २४-- ये भाषात्मक शब्द तो जीवोके शब्द है इनको पुद्गल द्रव्यकी पर्याय क्यो कहा? torie-उत्तर- यद्यपि भाषात्मक शब्दको उत्पत्ति जीवके संयोगसे है, जीवने जो पहिले शब्दादि पञ्चेन्द्रिय विषयोके रागवश सुस्वर या दुस्वर प्रकृतिका बन्ध किया था उसके उदय के निमित्तसे है, तथापि निश्चयसे भाषावर्गणा नामक पुद्गल स्कन्धके-ही परिणमन है, अतः भाषात्मक शब्द पुद्गल द्रव्यके पर्याय कहे गये है। पप्रश्न २५-'इन शब्दोके वर्तमान पर्यायके समय जीव किस प्रकार निमित्त होता है ? उत्तर-जीवके इच्छा उत्पन्न होती है कि मै इस प्रकार बोलू । इच्छाके निमित्तसे आत्माके प्रदेशोका योग होता है । उस योगके निमित्तसे एकक्षेत्रावगाहस्थित शरीरका वात (वायु) चलता है। शरीरवायु चलनेके निमित्तसे औठ, जिह्वा, कण्ठ, तालका तदनरूप हलन चलन होता है उसके निमित्तसे भाषावर्गणाका शब्दरूप परिणमन होता है ।) प्रश्न २६ - दिव्यध्वनिके शब्दमे आत्मा किस प्रकार निमित्त होता है ? उत्तर-पूर्वकालमे सम्यग्दृष्टि प्रात्माने जगतके जीवोके प्रति परमकरूणारूप भाव किये "इनका मोह किसी प्रकार छूटे सुमार्गपर लग जावे आदि", इस प्रकारकी भावनासे जो विशिष्ट पुण्यप्रकृति एव सुस्वर प्रकृतिका बध किया उसके उदयको निमित्त पाकर, भव्य जीवोके पुण्योदय होनेपर, योगके निमित्तसे अहंत परमेष्ठीके सर्वाङ्गसे भाषावर्गणावोका अनक्षरात्मक भाषारूप परिणमन होता है। प्रश्न २७- प्रभाषात्मक शब्द कितने प्रकारके है ? उत्तर-प्रभाषात्मक शब्द २ प्रकारके है-(१) प्रायोगिक, (२) वैनसिक । • प्रश्न २८-प्रायोगिक शब्द किसे कहते है ? उत्तर-~-यथा योग्य दो पौद्गलिक स्कधोके प्रयोग सम्बन्ध होनेपर जो शब्द उत्पन्न होते है उन्हे प्रायोगिक शब्द कहते है। प्रश्न २६-प्रायोगिक शब्द कितने प्रकारके होते है ?
SR No.010794
Book TitleDravyasangraha ki Prashnottari Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj
PublisherSahajanand Shastramala
Publication Year1976
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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