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________________ द्रव्यसग्रह--प्रश्नोत्तरी टीका विशिष्ट सम्बन्ध हो जाता है। प्रश्न २२- परमाणुका परमाणुसे बन्ध क्यो हो जाता है ? उत्तर- परमाणुका परमाणुके साथ स्निग्ध रूक्ष गुणके परिणमनके कारण बन्ध हो जाता है। दो अधिक अविभागप्रतिच्छेद (डिग्री) वाले स्निग्ध या रूक्ष परमाणुके साथ उससे २ कम अविभागप्रतिच्छेद वाले स्निग्ध या रूक्ष किसी भी परमाणुका बन्ध हो जाता है ।। किन्तु एक अविभागप्रतिच्छेद वाले स्निग्ध या रूक्ष किसी भी परमाणुका बन्ध नही होता ।। जैसे कि जघन्य राग वाले मुनिके रागका बन्ध नहीं होता। प्रश्न २३-परमाणु शुद्ध होते या अशुद्ध ? उत्तर- परमाणु केवल एक द्रव्य रह गया। इस अपेक्षासे तो परमाणु शुद्ध है । जिस /परमाणुका बन्ध न हो ऐसी शुद्धताकी अपेक्षा जघन्य अर्थात् एक अविभागप्रतिच्छेद मात्र स्निग्ध, रूक्ष परमाणु शुद्ध है अनेक अविभागप्रतिच्छेद वाला स्निग्ध, रूक्ष परमाणु अशुद्ध है । प्रश्न २४- जघन्यगुण वाले परमाणुका फिर कभी बन्ध होता है या नहीं? उत्तर-जघन्यगुण वाले परमाणुमे जब स्वय अविभागप्रतिच्छेदकी वृद्धि हो जाती है तब बन्धयोग्य होता है। प्रश्न २५-दो परमाणुवोका बन्ध होनेपर वे किस रूप परिणम जाते है ? उत्तर- कम गुण वाला परमाणु अधिक गुण वाले परमाणुकी तरह परिणम जाता। है । जैसे १५ डिग्रीके रूक्ष परमाणुका १७ डिग्रीके स्निग्ध परमाणुके साश बन्ध हुआ तो रूक्ष || परमाणु भी स्निग्धपरमाणुके बन्धका निमित्त पाकर रूक्ष परिणमनका व्यय करना हुआ) स्निग्ध गुणरूप परिणम जाता है । २६-- इस वर्णनसे हमे क्या ध्यान करना चाहिये ? Inउत्तर- जैसे जघन्य गुण वाला स्निग्धत्व या रूक्षत्व परमाणुके बन्धके लिये समर्थ ।। नही होता उसी प्रकार जघन्यगुण वाला राग जीवके वन्धके लिये समर्थ नही होता और उस रागके नष्ट होते ही अनन्त चतुष्टयको शुद्धता हो जाती है । यह सब निज शुद्धात्मभावनाका // फल है । अतः रागरहित निजशुद्ध चैतन्यस्वभावकी उपासना करना चाहिये । अब पुद्गल द्रव्यकी द्रव्यपर्यायोका वर्णन करते है सद्दो बधो सुहुमो थूलो सठाण भेद तम छाया । उज्जोदादवमहिया पुग्गलदव्वस्स पज्जाया ॥१६॥ अन्वय- सद्दो, बधो, सुहमो, थूलो, सठाण, भेदतमछाया, उज्जोदादवसहिया पुग्गलदव्वस्स पज्जाया। अर्थ-- शब्द, बन्ध, सूक्ष्म, स्थूल, सस्थान, भेद, अन्धकार, छाया, उद्योत, आताप ये
SR No.010794
Book TitleDravyasangraha ki Prashnottari Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj
PublisherSahajanand Shastramala
Publication Year1976
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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