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________________ गाथा १४ उत्तर-जिन कर्मवर्गणावोमे जीवके सुख दुःख होनेके निमित्त होनेकी प्रकृति हो उन्हे वेदनीयकर्म कहते है। प्रश्न ८-- मोहनीयकर्म किसे कहते है ? उत्तर-जिन कर्मवर्गणावोमे जीवके सम्यक्त्व और चारित्र गुणके विकृत होनेमें निमित्त होनेकी प्रकृति हो उन्हें मोहनीयकर्म कहते है । प्रश्न 8-- प्रायुकर्म किसे कहते हैं ? उत्तर- जिन कर्मवर्गणाप्रोमे जीवको नये भवमे ले जानेमे व शरीरमें रुके रहने में निमित्त होनेकी प्रकृति हो उन्हे आयुकर्म कहते है। प्रश्न १०- नामकर्म किसे कहते है ? उत्तर- जिन कर्मवर्गणावोमे शरीरकी रचना होनेके निमित्त होनेकी प्रकृति ही उन्हें नामकर्म कहते है। प्रश्न ११- गोत्रकर्म किसे कहते हैं ? उत्तर-- जिस कर्मके उदयसे जोव उच्च नीच कुलमे उत्पन्न हो व रहे उसे गोत्रकर्म कहते है। प्रश्न १२- अन्तरायकर्म किसे कहते है ? उत्तर- जिसके उदयसे दान, लाभ, भोग, उपभोग और वीर्यमे विघ्न आवे उसे अंतरायकर्म कहते है। प्रश्न १३.. कर्म किस उपायसे नष्ट होते हैं ? • उत्तर- निज शुद्धात्माके अनुभवके बलसे कर्म स्वयं अकर्म हो जाते है। कर्मका अकर्मस्वरूप होना ही कर्मका नाश है। प्रश्न १४-कर्मोके नाशका क्या क्रम है ? उत्तर-पहिले मोहनीयकर्मका क्षय होता है, पश्चात् ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय- इन तीनका एक साथ क्षय होता है । पश्चात् शेषके ४ कर्मोका एक साथ क्षय होता है । पाठो कोका क्षय हो जानेपर प्रात्मा सिद्ध परमात्मा कहलाता है । सिद्धभगवान आठो कर्मोंसे रहित है। । प्रश्न १५---सिद्धभगवानके गुण कितने है ? उत्तर-विशेष भेदनयसे सिद्धभगवानमें गतिरहितता, इन्द्रियरहितता, गुणस्थानातीतता, अनन्त ज्ञान, अनन्तप्रानन्द आदि अनन्त गुण है। प्रश्न १६-अभेदनयसे सिद्धभगवानमे कितने गुण है ? उत्तर- साक्षात् अभेदनयसे "शुद्धचैतन्य" एक गुण है । विवक्षित अभेदनयसे सिद्धप्रभु
SR No.010794
Book TitleDravyasangraha ki Prashnottari Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj
PublisherSahajanand Shastramala
Publication Year1976
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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