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________________ ७० द्रव्यसंग्रह-प्रश्नोत्तरी टीका प्रश्न ४१- मार्गणा किसे कहते है ? उत्तर-जिन सदृश धर्मों द्वारा जीवोको खोजा जा सकता हो उन धर्मोके द्वारा जीवो के खोजनेको मार्गणा कहते हैं। प्रश्न ४२- मार्गणाके कितने प्रकार है ? उत्तर-मार्गरणाके १४ प्रकार है-(१) गतिमार्गणा, (२) इन्द्रियजातिमार्गणा, (३) कायमार्गणा, (6) योगमार्गणा, (५) वेदमार्गणा, (६) कषायमार्गणा, (७) ज्ञानमार्गणा, (८) सयममार्गणा, (९) दर्शनमार्गणा, (१०) लेश्यामार्गणा, (११) भव्यत्वमार्गणा, (१२) सम्यक्त्वमार्गणा, (१३) सज्ञित्वमार्गणा और (१४) आहारकमार्गणा । प्रश्न ४३-गतिमार्गणा किसे कहते है ? उत्तर- गतिकी अपेक्षासे जीवोका विज्ञान करना गतिमार्गणा है । इस मार्गणासे जीव ५ प्रकारसे उपलब्ध होते है-१- नारकी, २-तियंच, ३- मनुष्य, ४-- देव, ५-- गतिरहित । प्रश्न ४४- इन्द्रिय जाति मार्गणा किसे कहते है ? उत्तर- इन्द्रिय जातिकी अपेक्षासे जीवोको खोजना इन्द्रिय जाति मार्गणा या इन्द्रियमार्गणा है । इस मार्गणासे जीव ६ प्रकारसे उपलब्ध होते हैं-(१) एकेन्द्रिय, (२) द्वीन्द्रिय, (३) त्रीन्द्रिय, (४) चतुरिन्द्रिय, (५) पञ्चेन्द्रिय और (६) इन्द्रियरहित । प्रश्न ४५-कायमार्गणा किसे कहते है ? उत्तर-- काय (शरीर) की प्रधानतासे जीवोका परिचय पाना कायमार्गणा है। कायमार्गणासे जीव ७ तरहसे ज्ञात होते है-(१) पृथ्वीकायिक, (२) जलकायिक, (३) अग्निकायिक, (३) वायुकायिक, (५) वनस्पतिकायिक, (६) प्रसकायिक और (७) कायरहित ।। प्रश्न ४६- जो जीव विग्रह गतिमे गमन कर रहे है उनके केवल तजम और कार्माण ही शरीर है, वे क्या कायरहितमे अन्तर्गत है ? उत्तर-जो जीव जिस कायमे उत्पन्न होनेके लिये विग्रहगतिसे गमन कर रहा है उसके उप काय सम्बवी नामकर्म प्रकृतियोका उदय होनेमे तथा १,२ या ३ समयमे ही उस कायको अवश्य प्राप्त करनेसे उस ही कायवानमे गभित है वे कायरहितमे अन्तर्गत नहीं होते। प्रश्न ४५- योगमार्गणा किसे कहते है ? उत्तर- काय वचन व मन प्रयत्नके निमित्तसे प्रात्मप्रदेशोके परिस्पन्द होनेको योग कहते है । योगकी अपेक्षा जीवोका परिचय करना योगमार्गणा है। योगमार्गणाकी अपेक्षा जीव ६ प्रकारसे उपलब्ध होते है- (१) श्रीदारिक काययोगो, () श्रीदारिक मिश्रकाययोगी, (३) यक काययोगी (४) वैक्रियक मिश्रकाययोगी, (५) आहारक काययोगी, (६) प्राहारकमि ए पोगो, (७) कार्माणकाययोगी, (८) सत्यवचनयोगी, (९) असत्यवचनयोगी,
SR No.010794
Book TitleDravyasangraha ki Prashnottari Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj
PublisherSahajanand Shastramala
Publication Year1976
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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