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________________ २४ द्रव्यसग्रह-प्रश्नोत्तरी टीका उत्तर-व्यञ्जनावग्रह चक्षुरिन्द्रिय व मनके निमित्तसे उत्पन्न नहीं होता, क्योकि चक्षुरिन्द्रिय और मन अप्राप्यकारी है, इनसे जो जाना जाता है वह एकदम स्पष्ट हो जाता है। व्यञ्जनावग्रह केवल स्पर्शन, रसमा, घ्राण और श्रोत्र-~-इन चार इन्द्रियोके निमित्तसे उत्पन्न होता है। प्रश्न ५४-. मतिज्ञानके कितने प्रभेद हो सकते है। उत्तर-- मतिज्ञानके मूल भेद ५ है-(१) साव्यवहारिक प्रत्यक्ष, (२) स्मरण, (३) प्रत्यभिज्ञान, (४) तर्क, (५) अनुमान (स्वार्थानुमान) । इनमे से प्रत्येकके भेद लगाना चाहिये । विस्तारसे तो मतिज्ञानके असख्यात भेद हो जाते है । प्रश्न ५५--साव्यवहारिक प्रत्यक्षके कितने भेद है ? उत्तर--साव्यवहारिक प्रत्यक्षके कुल भेद ३३६ है। वे इस प्रकार है-व्यञ्जनावग्रहके ४८, क्योकि व्यञ्जनावग्रह चार इन्द्रियोसे बहु आदि बारह प्रकारके पदार्थोके विषयमे उत्पन्न होता है । अर्थावग्रहके ७२, क्योकि अर्थावग्रह पांचो इन्द्रिय व छठा मन इन ६ साधनो से बारह प्रकारके पदार्थोके विषयोमे उत्पन्न होता है। इसी प्रकार ईहाके ७२, अवायके ७२ पीर धारणाके भी ७२ भेद हो जाते है। सब मिलाकर साव्यवहारिक प्रत्यक्षके ३३६ भेद हुये। प्रश्न ५६- स्मरण, प्रत्यभिज्ञान, तर्क व स्वार्थानुमानके कितने भेद हो जाते है ? उत्तर-इनके प्रत्येकके १२, १२ भेद हो जाते है, क्योकि उक्त चारो ज्ञान मनके निमित्तसे उत्पन्न होते है, इन्द्रियोके निमित्तसे उत्पन्न नही होते, अन. बारह प्रकारके पदार्थो विषयक मनसे उत्पन्न होने वाले स्मरणादि १२-१२ प्रकारके हो जाते हैं । प्रश्न ५७-- श्रुतज्ञानके कितने भेद है ? उत्तर- श्रुतज्ञानके २ भेद है-(१) अनक्षरात्मक श्रुतज्ञान, (२) अक्षरात्मक श्रुतज्ञान । प्रश्न ५८- अनक्षरात्मक श्रुतज्ञान किसे कहते है ? उत्तर- जिसका ग्रहण अक्षरके रूपमे नही किया जाता है उसे अनक्षरात्मक श्रुतज्ञान कहते है ? प्रश्न ५६- मनक्षरात्मक श्रुतज्ञान किन जीवोके होता है ? ___ उत्तर-एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय व असैनी पञ्चेन्द्रिय जीवोके तो अनक्षरामक श्रुतज्ञान ही होता है। सैनो पञ्चेन्द्रिय जीवोके भी अनक्षरात्मक श्रुतज्ञान हो सकता है। प्रश्न ६०- अनक्षरात्मक श्रुतज्ञानके कितने भेद है ? उत्तर-अनक्षरात्मक श्रुतज्ञानके २ भेद है-(१) पर्याय, (२) पर्यायसमास ।
SR No.010794
Book TitleDravyasangraha ki Prashnottari Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj
PublisherSahajanand Shastramala
Publication Year1976
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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