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________________ गाथा ५ रिक प्रत्यक्ष है । प्रश्न २४ - यह मन व इन्द्रियोसे उत्पन्न हुआ इसे तो परोक्ष ही कहना चाहिये ? उत्तर - मन, इन्द्रियोसे उत्पन्न होनेके कारण वास्तवमे यह मति परोक्ष ही है, किन्तु व्यवहारसे ऐसा प्रतीत होता है कि देखनेसे वस्तु स्पष्ट देखी जा रही है, कानोसे शब्द स्पष्ट सुना जा रहा है, इस कारण वह सब उपचारसे प्रत्यक्ष है । लोक कहते भी है कि मैने प्रत्यक्ष व्यवहारस देखा, प्रत्यक्ष सुना प्रादि । प्रश्न २५-- - स्मृति, प्रत्यभिज्ञान, तर्क और अनुमान के विषय किस इन्द्रियके नियत विषय है ? उत्तर -- स्मृति, प्रत्यभिज्ञान, तर्क और अनुमानके विषय मनके नियत विषय है । प्रश्न २६ - सर्व प्रकार के मतिज्ञानके जाननेकी प्रगतिकी अपेक्षा कितने-भेद है ? उत्तर- सर्व मतिज्ञानोके ४-४ भेद है । अवग्रह, ईहा, अवाय, धारणा । २१ कहते है । प्रश्न २७ - अवग्रहज्ञान किसे कहते है ? उत्तर- विषयविषयी के सन्निपातके अनन्तर जो श्राद्य ग्रहण होता है उसे अवग्रह. 3-4 י उत्तर- अवग्रहके दो भेद है - (१) व्यञ्जनावग्रह, (२) श्रविग्रह | प्रश्न ३० - व्यञ्जनावग्रह किसे कहते है ? प्रश्न २८ - सन्निपातका मतलब क्या है ? पाल - उत्तर - बाह्य पदार्थं तो विषय होते है और इन्द्रिय एवं मन विषय कहलाते है । इन ! दोनोकी ज्ञानके उत्पन्न करने योग्य अवस्थाका नाम सन्निपात है । ग्रहण प्रश्न २६ - प्रवग्रहके कितने भेद है ? ধक्षू पन के उत्तर- प्राप्त अर्थात् स्पृष्ट प्रर्थके ग्रहरणको व्यञ्जनावग्रह कहते है अथवा अस्पष्ट अर्थके ग्रहण करनेको व्यञ्जनवग्रह कहते है । इस ज्ञानमे इतनी कमजोरी है कि जाननेकी दिशा, भी अनिश्चित रहती है । और जालको पानी प्रश्न ३१-- अर्थावग्रह किसे कहते है ? का उत्तर - अप्राप्त अर्थात् अस्पृष्ट अर्थके ग्रहण करनेको प्रर्थावग्रह कहते है, अथवा स्पष्ट अर्थ ग्रहण करनेको अर्थावग्रह कहते है । इस ज्ञानमें जानने की दिशा निश्चित है और इस ज्ञानके बाद ईहा श्रादि ज्ञान हो सकते है । प्रश्न ३२-- ईहाज्ञान किसे कहते है ? उत्तर-- अवग्रहसे गृहीत प्रर्थकी विशेष परीक्षाको ईहा कहते है । इस ज्ञानमे सदेहपना नही है, किन्तु वस्तुका विशेष परिज्ञान हो रहा है । फिर भी यह ज्ञान संदेहसे ऊपर और
SR No.010794
Book TitleDravyasangraha ki Prashnottari Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj
PublisherSahajanand Shastramala
Publication Year1976
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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