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________________ गाथा८४ २४३ क्यो नही कह दिया जाता है ? संवेध है उत्तर - प्रात्मा ग्राहक दर्शन है, इसको स्वीकार करनेके लिये विशेप मननकी ओर अनुभवकी आवश्यकता है। तार्किक प्रसङ्गोमे इसका अवसर नही है। वहाँ तो उनकी प्रतीतिके लिये स्थूल रीतिसे निरूपण करके यही बताना कि "ज्ञान स्व व परका प्रकाशक है" उपयुक्त हो जाता है । विवक्षावश इसमे दूषण नही आता है ।। प्रश्न २०- जो लोग दर्शन व ज्ञान दोनो गुण मानते है उन्हे "दर्शन पदार्थोंका सामान्य ग्रहण करता है" इस कथनके बजाय "दर्शन प्रात्माका प्रकाशक है" ऐसा क्यो नही कह दिया जाता ? उत्तर-स्वसमय सम्बन्धी सूक्ष्म व्याख्यानमे रुचि न रखने वाले जनोकी प्रतीतिके अर्थ व्यवहारनयका उक्त कथन दोप उन्पन्न नहीं करता है। इस प्रकार दर्शनके स्वरूपका वर्णन करके अब यह कहा जाता है कि दर्शन और ज्ञान - इन दोनोका उपयोग जीवोमे एक साथ पाया जाता है या क्रमसे ? दसणपुव्व णारण छदुमत्थारण ण दुण्णि उवोगा। जुगव जम्हा केवलिणाहे जुगव तु ते दो वि ॥४४॥ अन्वय- छदुमत्याणं दसरणपुव्व णाण, जम्हा दुण्णि उवोगा जुगव ण, तु केवलिगाहे ते दोवि जुगव । अर्थ-छद्मस्थ जीवोके दर्शनपूर्वक ज्ञान होता है, क्योकि ये दोनो उपयोग वहाँ एक साय नही होते है, किन्तु केवलो भगवान्मे वे दोनो ही उपयोग एक साथ होते है। प्रश्न १ -छद्मस्थ किसे कहते है ? उत्तर- छमका अर्थ है अज्ञान याने अपूर्ण ज्ञान अथवा ज्ञानावरण, दर्शनावरण ये दो आवरण उसमे जो स्थ कह रहे उसे छद्मस्थ कहते है। प्रश्न २-छद्मस्थोमे कितने गुणस्थान आ जाते है ? उत्तर- मिथ्यात्व, सासादनमम्यक्त्व, मिश्रसम्यक्त्व, अविरतसम्यक्त्व, देशविरत, प्रमत्तविरत, अप्रमत्तविरत, अपूर्वकरण, अनिवृत्तिकरण, सूक्ष्मसाम्पराय, उपशान्तमोह, क्षीणमोह-ये १२ गुणस्थान छमस्थोमे आते है अर्थात् इन बारह गुणस्थानवी जीवोको छद्मस्थ कहते है। प्रश्न ३- छद्मस्थोका ज्ञान दर्शनपूर्वक क्यो होता है ? उत्तर-छद्मस्थ जीवोका ज्ञान अपूर्ण रहता है और जब तक ज्ञान अपूर्ण रहता है तब तक यह योग्यता नहीं होती कि अन्तर्मुख वित्प्रकाशका उपयोग और बहिर्मुख चित्प्रकाश का उपयोग एक साथ रह सके ।
SR No.010794
Book TitleDravyasangraha ki Prashnottari Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj
PublisherSahajanand Shastramala
Publication Year1976
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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