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________________ २३४ द्रव्यमग्रह-प्रश्नोत्तरी टीका उत्तर- अहिनासे विपरीत पाचरणोको धर्म मानकर उस कुधर्मकी सेवा, उपासना, अनुष्ठान करनेको कुधर्म अनायतन कहते है ।। प्रश्न ६६- कुवर्मसेवक अनायतन किसे कहते है ? उत्तर- कुधर्मका आचरण करने वालोकी मगति, सम्मति, प्रीति, अनुमति आदि करनेको कुधर्मसेवक अनायनन कहते है। प्रश्न ६७-कुदेव अनायतन किसे कहते है ? उत्तर-- काम, क्रोध, माया प्रादिका आचरण करने वाले और देव नामसे प्रसिद्ध जीवोकी सेवा, भक्ति, उपासना स्तुति आदि करनेको कुदेव अनायतन कहते है। प्रश्न ६८-कुदेवसेवक अनायतन किसे कहते है ? उत्तर-कुदेवोकी मेवा, भक्ति करने वाले जनोको सगति, सम्मति, प्रीति, अनुमति श्रादि करनेको कुदेवसेवक अनायतन कहते है। प्रश्न ६९- निश्चयसे अनायतन क्या है ? उत्तर--निश्चयसे मिश्यात्व, राग, द्वेषादि विभाव अनायतन हैं। इन विभावोकी रुचि, प्रवृत्तिका त्याग हो अनायतन सेवाका त्याग है। प्रश्न ७०- मूढता तीन कौन-कौन है ? उत्तर-(१) देवमूढना, (२) लोकमूढता, (३) पाखण्डिमूढता ये तीन मूढता हैं । प्रश्न ७१-- देवमूढता किसे कहते है ? उत्तर-निर्दोप, सर्वज्ञ, महजानन्दमय परमात्माके स्वरूपको न जानकर लौकिक प्रयोजनके अर्थ रागी द्वेषी क्षेत्रपाल, भैरव, भवानी, शीतला आदि कुदेवालयोकी आराधना करना देवमूढता कहते हैं ? । प्रश्न ७२-लोकमूढता किसे कहते है ? उत्तर-नदीस्नान, तीर्थस्नान, बटपूजा, अग्निपात, गिरिपात आदिको पुण्यका कारण मानना और करना सो लोकमूढता है।। प्रश्न ७३-- पाखण्डिमूढता किसे कहते है ? उत्तर- वीतरागमार्गका शरण छोडकर रागी द्वेषी पाखण्डियोकी, उनके उपदेशकी भयादिसे या लौकिक प्रयोजनवश या धर्म मान कर भक्ति पूजा वन्दन आदि करनेको पाखण्डिमूढता कहते हैं। प्रश्न ७४-- मूढतारहित सम्यग्दृष्टिक क्या स्थिति होती है ? उत्तर- उक्त समस्त मूढताप्रोका परिहार कर निज शुद्ध अन्तस्तत्व रूप देव धर्म गुरुमे अवस्थिति सम्यग्दृष्टि जीवकी होती है।
SR No.010794
Book TitleDravyasangraha ki Prashnottari Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj
PublisherSahajanand Shastramala
Publication Year1976
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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