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________________ २२८ द्रव्यसग्रह-श्नोत्तरी टीका उत्तर-समस्त द्वादशाङ्गका ज्ञान होनेपर होने वाली तत्त्व-प्रतीतिको अवगाहसम्यक्त्व कहते है। प्रश्न १४- परमावगाढ सम्यक्त्व क्सेि कहते है ? उत्तर- केवलज्ञान प्रक्ट हो जानेपर वर्तते हुये सम्यवत्वको परमावगाढ सम्यक्त्व कहते है। प्रश्न १५-उक्त सम्यक्त्वोमे क्या सभी सम्यक्त्व निर्दोप है ? उत्तर-औपशमिक सम्यक्त्व, क्षायिकसम्यक्त्व व परमावगाढ़सम्यक्त्व-ये तीन तो निर्दोष ही है, क्षायोपशमिकसम्यक्त्व (वेदकसम्यक्त्व) चल, मलिन अगाढ नामक सूक्ष्म दोप सहित है। शेषके सम्यक्त्व यदि क्षायोपशमिक सम्यक्त्व रूपमे हो तो इन सूक्ष्म दोपोकर सहित हैं और यदि वे औपशमिक या क्षायिक है तो निर्दोप है । प्रश्न १६- सम्यग्दृष्टिकी परिस्थिति कैसी होती है ? उत्तर- इसका विवरण सम्यक्त्वके अङ्ग और सम्यक्त्वके दोष जाननेमे हो जाता है । अङ्गोके ज्ञानसे तो यह विदित होता है कि सम्यक्त्वमे ऐसे गुण होते है और दोषोंके ज्ञानसे यह विदित होता कि सम्यक्त्व इन दोषोसे रहित होता है । पश्न १७- सम्यक्त्वके अङ्ग कौन-कौन है ? उत्तर- सम्यक्त्वके अग ८ है-नि शकित, (२) नि काक्षित, (३) निर्विचिकित्सित, . (१) अमूढदृष्टि, (५) उपगृहन, (६) स्थितिकरण, (७) वात्सल्य प्रभावना । प्रश्म १८-नि शङ्कित अङ्ग क्या है ? उत्तर-समस्त अगोका विवरण व्यवहार और निश्चय दोनो दृष्टियोसे होता है। अत नि शङ्कित अङ्गको भी व्यवहारनिःशङ्कित अङ्ग और निश्चयनि.शङ्कित प्रग इस प्रकार दोनो प्रकारसे जानना चाहिये। प्रश्न १६-- व्यवहारनिःशङ्कित अङ्ग किसे कहते है ? ___ उत्तर-- वीतराग सर्वज्ञदेवसे प्रणीत हुए तत्त्वमे सन्देह (शका) नही करनेको व्यवहारनि शशित अङ्ग कहते है। प्रश्न २०-- यदि वीतरागसर्वज्ञ प्रणीत तत्त्वोमे कोई असत्य निरूपण हो तो उसे क्यो मान लेना चाहिये? उत्तर- वीतराग सर्वज्ञदेवके वचन असत्य कभी नही हो सक्ते, क्योकि असत्यवचनके दो कारण हुआ करते है -(१) रागादिक दोप और (२) अज्ञान, परन्तु वीतराग सर्वज्ञदेवमे न तो रागादि दोष है व अज्ञानका अश भी उनमे नही, है, अत वे सर्वज्ञ है । यही कारण है कि उनके प्रेणीत तत्त्वोमे असत्यता कभी नही हो सकती।
SR No.010794
Book TitleDravyasangraha ki Prashnottari Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj
PublisherSahajanand Shastramala
Publication Year1976
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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