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________________ भाग ३८ २१७ जीवमोक्ष अतीत गुणस्थान होते ही हो जाता है। प्रश्न १०- द्रव्यमोक्ष किस गुणस्थानमे होता है ? उत्तर- घातक कर्मोकी अपेक्षासे द्रव्यमोक्ष १३वे गुणस्थानमे है और समस्त कर्मकी मुक्तिकी अपेक्षा द्रव्यमोक्ष अतीत गुणस्थान होते ही हो जाता है । प्रश्न ११-- मुक्तावस्थामे आत्माकी क्या स्थिति है ? उत्तर- मुक्त परमात्मा केवलज्ञानके द्वारा तीन लोक, तीन कालवर्ती सर्वद्रव्य गुणपर्यायोको जानते रहते है, केवलदर्शनके द्वारा सर्वज्ञायक आत्माके स्वरूपको निरन्तर चेतते रहते है, अनन्त प्रानन्दके द्वारा पूर्ण निराकुलतारूप सहज परमानन्दको भोगते रहते है । इसी प्रकार ममस्त गुणोके शुद्ध विकासका अनुभव करते रहते है। प्रश्न १२- किन कर्मप्रकृतियोका किस गुणस्थानमे पूर्ण क्षय हो जाता है ? उत्तर- जिस मनुष्यभवसे प्रात्मा मुक्त होता है उसमे नरवायु, देवायु व तिर्यगायुकी तो सत्ता ही नही है । अनन्तानुबन्धी ४ व दर्शनमोहकी ३, इन सात प्रकृतियोका चौथेसे लेकर सातवें तक किसी भी गुणस्थानमे क्षय हो जाता है। नवमे गुणस्थानमे पहिले स्त्यानगृद्धि, निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला व नामकर्मकी १३ इस तरह १६ का क्षय, पश्चात् अप्रत्याख्यानावरण व प्रत्याख्यानावरण सम्बन्धी ८, पश्चात् नपु सकवेद, पश्चात् स्त्रीवेद, पश्चात् ६ नोकपाय, पश्चात् पुरुषवेद, पश्चात् सज्वलनक्रोध, पश्चात् सज्वलनमान, पश्चात् संज्वलन माया, इन ३६ प्रकृतियोका क्षय होता है। १०वे गुणस्थानमे सज्वलनलोभका क्षय होता है। १ि२ गुणस्थानमे ज्ञानावरणकी ५, अन्तरायकी ५, दर्शनावरणकी अवशिष्ट ६इन १६ प्रकृतियोका क्षय हो जाता है। इस तरह ३ +७+३६+१+१६ = ६३ तरेसठ प्रकृतियोका नाश हो जाता है और सवलपरमात्मत्व हो जाता है । पश्चात् शेपको ८५ प्रकृतियोका क्षय १४वें गुणस्थानमे होता है और गुणस्थानातीत होकर आत्मा निकलपरमात्मा हो जाता है। इस प्रकार मोक्षतत्त्वके वर्णनके साथ साथ तत्त्वोका वर्णन समाप्त हुआ । इन सात तत्त्वोमे पुण्य और पाप मिलानेसे ६ पदार्थ हो जाते है । उन पुण्य और पाप पदार्थोका कथन इस गाथामे बताते है सुहअसुहभावजुत्ता पुण्य पाव हवति खलु जीवा । साद मुहाउ णाम गोद पुण्ण पराणि पाव च ।।३।। अन्वय-मुहसमुह मावजुत्ता जीवा खलु पुण्ण पाव हवति । साद मुहाउ णाद गोद पुण्ण, च पराणि पाव । अर्थ- शुभ व अशुभ भावसे युक्त जीव पुण्य और पाप होते है । सातावेदनीय, तिर्य
SR No.010794
Book TitleDravyasangraha ki Prashnottari Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj
PublisherSahajanand Shastramala
Publication Year1976
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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