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________________ गाषा ३७ २१५ प्रश्न ६- क्या कर्मपुञ्ज अटपट झडते है या किसी व्यवस्थासहित झडते है ? उत्तर-कर्मद्रव्य श्रेणिनिर्जराके क्रमसे निर्जराको प्राप्त होते है । इस श्रेणिनिर्जराका वर्णन लब्धिसार क्षपणसार ग्रथसे देखना । यहाँ विस्तार भयसे नही लिख रहे है । प्रश्न ७-निर्जरा कितने प्रकारकी है ? उत्तर-निर्जरा दो प्रकारको है-(१) भावनिर्जरा और (२) द्रव्यनिर्जरा । प्रश्न - भावनिर्जरा किसे कहते है ? उत्तर- जिस आत्मपरिणामसे कर्म झडते है उस आतमपरिणामको भावनिर्जरा कहते sha प्रश्न - द्रव्यनिर्जरा किसे कहते है ? उत्तर- कर्मोके झडनेको द्रव्यनिर्जरा कहते है। प्रश्न १०- सवरपूर्वक निर्जराका मुख्य कारण क्या है ? उत्तर-सवरपूर्वक निर्जराका मुख्य कारण तप है और जितने परिणाम सवरके कारण है वे सब निर्जराके भी कारण है। प्रश्न ११- निर्जरा क्या केवल पापकर्मोकी होती है या पाप, पुण्य दोनो कर्मोंकी ? उत्तर- सरागसम्यग्दृष्टि जीवोके प्रायः पापकर्मोकी निर्जरा होती है और वीतराग सम्यग्दृष्टियोके पाप व पुण्य दोनो कर्मोनी निर्जरी होती है। प्रश्न १२- सरागसम्गग्दृष्टियोके पापके निर्जराकी तरह पुण्यकी निर्जराकी तरह पुण्य निर्जरा न होनेसे क्या ससारकी वृद्धि होगी ? उत्तर-ससारके मूल कारण पाप है। उनकी तो विशेषतया निर्जरा सम्यग्दृष्टि करता ही है, अत ससारकी वृद्धि नही होती तथा पापकर्मको निर्जरा होनेसे कर्मभारसे लघु हुमा यह अन्तरात्मा शीघ्र वीतराग सम्यग्दृष्टि हो जाता है और तब पाप पुण्यका नाश कर शीघ्र समारच्छेद कर सकता है। इस प्रकार निर्जरातत्त्वका वर्णन करके अब मोक्षतत्त्वका वर्णन करते है सबस्स कम्मणो जो खयहेदू अप्पणो हु परिणामो । गेयो स भावमोक्खो दव्वविमोक्खो य कम्मपुदभावो ॥३७॥ अन्वय--हु अप्पणो जो परिणामो सव्वस्स कम्मणो खयहेदू स भावमोखो य कम्मपुदभावो दवविमोक्खो णेगे। अर्थ-निश्चयसे प्रात्माका जो परिणाम समस्त फर्मके क्षयका कारण है उसे तो भावमोक्ष और कर्मोके पृथक् हो जानेको द्रव्यमोक्ष जानना चाहिये ।
SR No.010794
Book TitleDravyasangraha ki Prashnottari Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj
PublisherSahajanand Shastramala
Publication Year1976
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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