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________________ २०६ द्रव्यसंग्रह - प्रश्नोत्तरी टीका प्रश्न २५२ - श्रनुदिश विमानोकी कैसी रचना है ? उत्तर - ग्रैवेयव से ऊपर अनुदिश है । इसमे १ पटल है व कुल विमान & हैं१ मध्यमे और ८ दिशाओ मे । इन विमानोमे सम्यग्दृष्टि मुनि ही उत्पन्न हो सकता है । ये सब अहमिन्द्र होते है । इनकी प्रायु जघन्य ३१ सागर व उत्कृष्ट ३२ सागरकी होती है । प्रश्न २५३ - अनुत्तर विमानोकी कैसी रचना है ? उत्तर - अनुदिनसे ऊपर अनुत्तर है । इसमे १ पटल है व विमान केवल ५ है । मध्यमे तो सर्वार्थसिद्ध नामक विमान है, पूर्वमे विजय, दक्षिणमे वैजयन्त, पश्चिममे जयन्त और उत्तरमे अपराजित विमान है । सर्वार्थसिद्धिके देवोकी आयु ३३ सागर है । ये १ भव मनुष्यका धारण कर मोक्षको प्राप्त होते है । विजयादिक ४ विमानोके वासी देवोकी आयु जघन्य ३६, सागर व उत्कृष्ट ३३ सागरकी होती है । ये दो भवावतारी होते है । ये सब श्रहमिन्द्र है । प्रश्न २५४ - सिद्धशिला कहाँपर और कैसी है ? उत्तर - सर्वार्थसिद्धि विमानकी चोटीसे १२ योजन ऊपर सिद्धशिला है । यह मनुष्य लोक सोधमे ऊपर है और ४५ लाख योजनकी विस्तार वाली है, इसकी मोटाई ८ योजन है । इसका आकार छत्रकी तरह है । इसपर सिद्धभगवान तो विराजमान नही है, किन्तु इसके कुछ ऊपर इस सिद्धशिलाके विस्तार प्रमाण क्षेत्रमे सिद्धभगवान विराजमान है । बीचमे वातवलोके सिवाय अन्य कोई रचना नही है, अतः इसे सिद्धशिला कहते है । प्रश्न २५५ - सिद्धलोवका सक्षिप्त विवरण क्या है ? उत्तर - सिद्धशिला के ऊपर योजन बाहुल्य वाला घनोदधि वातवलय है । इसके ऊपर योजन बाहुल्य वाला घनवातवलय है, इसके ऊपर बाहुल्य प्रमाण तनुवातवलय है । इस तनुवातवलय के अन्तमे सिद्ध भगवान विराजमान है । जो साधु मनुष्यलोकमे जिस स्थान से कर्म - मुक्त हुए है उसकी सोधमे ऊपर एक समयमे ही आकर लोकके अत तक यहाँ स्थित है । यही लोकका भी अन्त हो जाता है । प्रश्न २५६ - यह ३४३ घनराजूप्रमाण लोक किसके आधारपर स्थित है ? उत्तर---इस लोकके मब प्रोर घनोदधिवातवलय है । उसके बाद घनवातवलय है, उसके बाद तनुवातवलय है । इन वातवलयोके आधारपर सब लोक अवस्थित है । ये वातवलय भी लोकमे ही शामिल है । वातवलय वायुस्वरूप होनेसे ये किसीके आवारपर नही है, मात्र आकाश हो उनका श्राधार है । प्रश्न २५७ - इस लोकानुप्रेक्षासे विशेष लाभ क्या है ? उत्तर- लोक्के आकार रचनानोके बोधरूप विशेष परिचयसे उत्कृष्ट वैराग्य होता है।
SR No.010794
Book TitleDravyasangraha ki Prashnottari Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj
PublisherSahajanand Shastramala
Publication Year1976
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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