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________________ १७० द्रव्यसंग्रह प्रश्नोत्तरी टीका प्रश्न ८७ - सर्वदेशनिरावरण अथवा शुद्धोपयोग किन गुरणस्थानोमे से होता है ? उत्तर- सर्वदेशनिरावरण अथवा पूर्ण शुद्धोपयोग सयोगकेवली न श्रयोगव वली, इन दो गुणस्थानोमे तथा प्रतीत गुरणस्थान मे पूर्ण शुद्धोपयोग होता है । इस पूर्ण शुद्धोपयोगका कारण एकदेशनिरावरण शुद्धोपयोग है । प्रश्न ८८- पूर्णशुद्धोपयोगका कारण एकदेशशुद्धोपयोग क्यो है ? - उत्तर- शुद्धपर्याय वाले श्रात्माको शुद्ध होना है । श्रशुद्धके श्रवलम्बनसे अशुद्धता और शुद्ध के अवलम्वन से शुद्धता प्रकट होती है। यह ग्रात्मा अभी तो शुद्ध है नही, फिर किस के अवलम्वन से शुद्धता प्रकट हो ? तथ्य यहाँ यह है कि आत्मा स्वभावदृष्टि या द्रव्यदृष्टिसे एक स्वरूप चैतन्यमात्र जाना जाता है । वह स्वभाव न सकपाय है, न अकपाय है, ऐसा स्वभावमात्र शुद्ध है । इस शुद्ध श्रात्मतत्त्वका जो उपयोग है यह पुरुषार्थ उत्तरोत्तर दृढतासे शुद्ध का उपयोग करता हुआ स्त्रय शुद्ध उपयोग हो जाता है । ( वह शुद्ध तत्त्वका उपयोग पूर्ण शुद्धोपयोग तो है नही और अशुद्धोपयोग भी नही, किन्तु शुद्ध तत्त्वका भाव, आलम्वन शुद्धताके के यथायोग्य परिणमनके कारण एकदेशनिरावरण शुद्धोपयोग कहा जाता है ।) प्रश्न - मुक्तिका कारण कौनसा उपयोग है ? उत्तर- मुक्तिका कारण एकदेशनिरावरण शुद्धोपयोग है, क्योकि पूर्ण शुद्धोपयोग तो मुक्तिरूप ही है और अशुभोपयोगरूप मोक्षका कारण नही हो सकता तथा मिथ्यात्व के साथ रहने वाला शुभोपयोग भी शुद्धोपयोगका कारण हो नही सकता । ग्रतः एकदेशनिरावरण शुद्धोपयोग ही मुक्तिका कारण है । प्रश्न १० --- शुद्धोपयोग साधक शुभोपयोग जो कि चौथे गुणस्थानसे छठे गुणस्थान तक कहा गया है वह मुक्तिका कारण है कि नही ? M. उत्तर- इस शुभोपयोगमे शुद्ध आत्मतत्त्वकी प्रतीति तो निरन्तर है और शुद्ध श्रात्म- / तत्त्वकी भावना व अवलम्बन भी यथासमय अल्प समयको होती रहती है । श्रतः यहां भी एकदेशनिरावरण शुद्धोपयोग पाया जाता है, किन्तु यहाँ शुद्ध प्रात्मतत्व के अवलम्बनको स्थिति , कदाचित् होनेसे शुभोपयोगकी मुख्यता है । वस्तुतः तो यहा भी रहने वाला एकदेशनिरावर शुद्धोपयोग और शुद्धात्मतत्त्वकी प्रतीतिरूप शुद्धोपयोग मुक्तिका कारण है । प्रश्न ६१- साक्षात् मुक्तिका कारण कौनसा उपयोग है ? उत्तर - उत्कृष्ट एकदेशनिरावरण शुद्धोपयोग मुक्तिका कारण है। उससे पहिलेके समस्त एकदेशनिरावरण शुद्धोपयोग परम्परया मुक्तिके कारण है अथवा उनके पश्चात् ही उत्तरसमय मे होने वाली एकदेश मुक्तिके कारण है । प्रश्न २ - तब तो एकदेशनिरावरण शुद्धोपयोग ही उपादेय व ध्येय होना चाहिये ?
SR No.010794
Book TitleDravyasangraha ki Prashnottari Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj
PublisherSahajanand Shastramala
Publication Year1976
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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