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द्रव्यसंग्रह-प्रश्नोत्तरी टीका उत्तर-देशसयम (सयमासयम) का भाव होनेपर अप्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया, लोभ व पाये नही रह सकती । देशविरत परिणाम सम्यक्त्व होनेपर ही मनुष्य नियंच के होता है । सो इनके सम्यक्त्व होनेके कारण आयु बन्धती है तो देवायु ही बन्धती है, अतः देशविरत देवगति सिवाय अन्य भत्रोमें जाता नही है, अतः मनुष्यायुसे सम्बन्ध रखने वाली ६ प्रकृतियोंका भी संवर हो जाता है।
प्रश्न ६०-- सम्यक्त्व तो चौथे गुणस्थानमे भी है, वहा इन ६ प्रकृतियोका सवर क्यों नही है ?
उत्तर-चौथा गुणस्थान तो देव व · नारकियोके भी होता है (सम्यग्दृष्टि देव या नारकी मरणकर देवगतिमे नही जा सकते है, ऐसा प्राकृतिक नियम है । वे मनुष्यगतिमें ही उत्पन्न होते है। अतः चौथे गुणस्थानमे इन ६ प्रकृतियोका सवर नही कहा । विशेष अपेक्षासे तो चौथे गुणस्थानके मनुष्य तिर्यञ्चोके आयु न बधी हो तो सम्यक्त्व होनेके कारण उनके भी देवायु ही बचती है और इस तरह उस चतुर्थगुणस्थानवर्ती मनुष्य तिर्यञ्चके भी इन ६ प्रकृतियोका सवर होता है।
प्रश्न ६१- प्रमत्तविरत गुणस्थानमे कितनी प्रकृतियोका संवर होता है ?
उत्तर-प्रमत्तविरत गुणस्थानमे ५५ प्रकृतियोका संवर होता है। इनमे ५१ तो पूर्व संवृत है और चार ये है- (१) प्रत्याख्यानावरण क्रोध, (२) प्रत्याख्यानावरण मान, (३) प्रत्याख्यानावरण माया, (४) प्रत्याख्यानावरण लोभ ।
प्रश्न ६२- प्रमत्तविरतमे इन ४ प्रकृतियोका सवर क्यो होता है ?
उत्तर- प्रमत्तविरत गुणस्थानमे सकलसयम प्रकट है । सकलसयमका परिणाम प्रकट होनेपर सकलसयमके प्रतिपक्षी इन ४ प्रकृतियोका आस्रव हो नहीं सकता।
प्रश्न ६३- अप्रमत्तविरत गुणस्थानमे कितनी प्रकृतियोका सवर होता है ?
उत्तर- अप्रमत्तविरत गुणस्थानमे ६१ प्रकृतियोका सवर होता है । इनमे ५५ प्रकतिया तो पूर्वसवृत है और ६ प्रकृतिया ये है-(१) असातावेदनीय, (२) अरतिमोहनीय, (३) शोकवेदनीय, (४) अशुभनामकर्म, (५) अस्थिरनामकर्म और (6) अयश.कीर्तिनामकर्म ।
प्रश्न ६४-अप्रमत्तविरतमे इन : प्रकृतियोका सवर क्यो हो जाता है ?
उत्तर-अप्रमत्तविरत गुणस्थानमे संज्वलनकषायका उदय मन्द हो जानेसे प्रमाद नही रहा। अप्रमत्तविरत अवस्थामे इन छ' प्रकृतियोका आस्रव हो नहीं सकता।
प्रश्न ६५-अपूर्वकरणमे कितनी प्रकृतियोका सवर होता है ? उत्तर-अपूर्वकरण गुणस्थानमे ६२ प्रकृतियोका सवर होता है । इनमेसे ६१ प्रकृ